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1तब शूही बिल्‍दद ने कहा,

2“प्रभुता करना और डराना यह उसी का काम है; वह अपने ऊँचे ऊँचे स्‍थानों में शान्‍ति रखता है।

3क्‍या उसकी सेनाओं की गिनती हो सकती? और कौन है जिस पर उसका प्रकाश नहीं पड़ता?

4फिर मनुष्‍य परमेश्वर की दृष्‍टि में धर्मी क्‍योंकर ठहर सकता है? और जो स्‍त्री से उत्‍पन्न हुआ है वह क्‍योंकर निर्मल हो सकता है?

5देख, उसकी दृष्‍टि में चन्‍द्रमा भी अन्‍धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते।

6फिर मनुष्‍य की क्‍या गिनती जो कीड़ा है, और आदमी कहाँ रहा जो केंचुआ है !”


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