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1क्‍या ही धन्‍य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढाँपा गया हो।(रोमि. 4:7)

2क्‍या ही धन्‍य है वह मनुष्‍य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्‍मा में कपट न हो।(रोमि. 4:8)

3जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते-कराहते मेरी हड्डियाँ पिघल गई।

4क्‍योंकि रात-दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई। (सेला)

5जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, “मैं यहोवा के सामने अपने अपराधों को मान लूँगा;” तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया। (सेला)(1 यूह. 1:9)

6इस कारण हर एक भक्‍त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्‍चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्‍त के पास न पहुँचेगी।

7तू मेरे छिपने का स्‍थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा। (सेला)

8मैं तुझे बुद्धि दूँगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उसमें तेरी अगुवाई करूँगा; मैं तुझ पर कृपादृष्‍टि रखूँगा और सम्मति दिया करूँगा।

9तुम घोड़े और खच्‍चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और रास से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के।

10दुष्‍ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्‍तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा।

11हे धर्मियो यहोवा के कारण आनन्‍दित और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालों आनन्‍द से जयजयकार करो!



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