1लेकिन यूनाह इस से निहायत ना ख़ुश और नाराज़ हुआ |
2और उस ने ख़ुदावन्द से यूँ दुआ की कि ऐ ख़ुदावन्द मै अपने वतन ही में था और तरतिस को भागने वाला था तो क्या मै ने यहीं न कहाँ था ?मै जानता था के तू रहीम-व-करीम ख़ुदा है जो कहर करने धीमी और शफ़क़त में गनी है और आजाब नाज़िल करने से बाज़ रहता है |
3अब ऐ ख़ुदावन्द मै तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरी जान ले ले क्यूँकि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |
4तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया क्या तू ऐसा नाराज़ है ?|
5और यूनाह शहर से बहर मशरिक़ की तरफ़ जा बैठा और वहाँ अपने लिए एक छापर बना कर उसके साया में बैठ रहा कि देखें शहर का क्या हल होता है |
6तब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने कडू की बेल उगाई और उसे यूनाह के ऊपर फलाया कि उसके सर पर साया हो और वह तकलीफ से बचे और यूनाह उस बेल के सबब से निहायत ख़ुश हुआ |
7लेकिन दुसरे दिन सुबह के वक़्त ख़ुदा ने एक कीड़ा भेजा जिस ने उस बेल को काट डाला और वह सुख़ गई |
8और जब आफताब बलन्द हुआ तो ख़ुदा ने मशरिक़ से लू चलाई और आफ़ताब कि गर्मी ने यूनाह के सर में असर किया और वह बेताब हो गया और मौत का आरजुमंद होकर कहने लगा कि मेरे इस जीने से मर जाना बेहतर है |
9और ख़ुदा ने यूनाह से फ़रमाया क्या तू इस बेल के सबब से ऐसा नाराज़ है ?उस ने कहाँ मै यहाँ तक नाराज़ हूँ कि मरना चाहता हूँ |
10तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया कि तुझे इस बेल का इतना ख़याल है जिसके लिए तू ने न कुछ मेहनत की और न उसे उगाया |जो एक ही रात में उगी और एक ही रात में सुख़ गई |
11और क्या मुझे लाजिम न था कि मै इतने बड़े शहर निनवा का ख़याल करूँ जिस में एक लाख बीस हज़ार से ज़्यादा ऐसे है जो अपने दहने और बाई हाथ में इम्तायाज़ नहीं करते और बे शुमार मवेशी है? |