1और ख़ुदावन्द का कलाम दूसरी बार यूनाह पर नाज़िल हुआ
2कि उठ उस बड़े शहर निनवा को जा और वहाँ उस बात कि मनादी कर जिसका मै तुझे हुक्म देता हूँ
3तब यूनाह ख़ुदावन्द के कलाम के मुताबिक़ उठ कर निनवा को गया और निनवा बहुत बड़ा शहर था |उस कि मसाफ़त तीन दिन की राह थीं
4और यूनाह शहर में दाख़िल हुआ और एक दिन की राह चला |उस ने मनादी की और कहाँ चालीस रोज़ के बाद निनवा बर्बाद किया जायेगा |
5तब निनवा के बाशिंदों ने ख़ुदा पर ईमान लाकर रोज़ा की मनादी की और अदना -व- आला सब ने टाट ओढा |
6और यह ख़बर निनवा के बादशाह को पहुँची और वह अपने तख़्त पर से उठा और बादशाही लिबास को उतार डाला और टाट ओढ़ कर रख पर बैठ गया |
7और बादशाह और उसके अर्कान-ए-दौलत के फ़रमान से निनवा में यह एलान किया गया और इस बात कि मनादी हुई कि कोइ इन्शान या हैवान गला या रमा कुछ न चखें और न खाए पिए |
8लेकिन इन्शान और हैवान टाट से मुलबस हुआ और ख़ुदा के हुज़ूर गिर-य-व ज़ारी करें बल्कि हर शख़्स अपनी बुरी रविश और अपने हाथ के ज़ालिम से बाज़ आए |
9शायद ख़ुदा रहम करे और अपना इरादा बदलें और अपने कहर शदीद से बाज़ आए और हम हालाक न हो |
10जब ख़ुदा ने उनकी ये हालत देखी कि वह अपनीं अपनी बुरी रविश से बाज़ आए तो वह अज़ाब से जो उसने उन पर नाजिल करने को कहाँ था बाज़ आया और उसे नाज़िल न किया |