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1पस,"ऐ मेरे बेटे , तू उस फ़ज़ल से जो "मसीह ईसा " में है मज़बूत बन ।

2और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं उनको ऐसे ईमानदार आदमियों के सुपुर्द कर जो औरों को भी सिखाने के क़ाबिल हों।

3"पस मसीह ईसा " के अच्छे सिपाही की तरह मेरे साथ दु:ख उठा।

4कोई सिपाही जब लड़ाई को जाता है अपने आपको दुनिया के मु'अमिलों में नहीं फँसाता ताकि अपने भरती करने वाले को ख़ुश करे।

5दँगल में मुक़ाबिला करने वाला भी अगर उस ने बा' क़ाइदा मुक़ाबिला न किया हो तो सेहरा नहीं पाता।

6जो किसान मेहनत करता है, पैदावार का हिस्सा पहले उसी को मिलना चाहिए।

7जो मैं कहता हूँ उस पर ग़ौर कर क्यूँकि "ख़ुदावन्द" तुझे सब बातों की समझ देगा।

8ईसा मसीह" को याद रख जो मुर्दों में से जी उठा है और दाऊद की नस्ल से है मेरी उस ख़ुशख़बरी के मुवाफ़िक़।

9जिसके लिए मैं बदकार की तरह दुखः उठाता हूँ यहाँ तक कि क़ैद हूँ मगर "ख़ुदा"का कलाम क़ैद नहीं।

10इसी वजह से मैं नेक लोगों की ख़ातिर सब कुछ सहता हूँ ताकि वो भी उस नजात को जो "मसीह ईसा " में है अबदी जलाल समेत हासिल करें।

11ये बात सच है कि जब हम उस के साथ मर गए तो उस के साथ जियेंगे भी।

12अगर हम दु:ख सहेंगे तो उस के साथ बादशाही भी करेंगे अगर हम उसका इन्कार करेंगे; तो वो भी हमारा इन्कार करेगा।

13अगर हम बेवफ़ा हो जाएँगे तो भी वो वफ़ादार रहेगा, क्योंकि वो अपने आप का इन्कार नहीं कर सकता।

14ये बातें उन्हें याद दिला और "ख़ुदावन्द" के सामने नसीहत कर के लफ़्ज़ी तकरार न करें जिस से कुछ हासिल नहीं बल्कि सुनने वाले बिगड़ जाते हैं ।

15अपने आपको"ख़ुदा"के सामने मक़बूल और ऐसे काम करने वाले की तरह पेश करने की कोशिश कर; जिसको शर्मिन्दा होना न पड़े, और जो हक़ के कलाम को दुरुस्ती से काम में लाता हो।

16लेकिन बेकार बातो से परहेज़ कर क्योंकि ऐसे शख़्स और भी बेदीनी में तरक़्क़ी करेंगे।

17और उन का कलाम सड़े घाव की तरह फैलता चला जाएगा; हुमिनयुस और फ़िलेतुस उन ही में से हैं।

18वो ये कह कर कि क़यामत हो चुकी है; हक़ से गुमराह हो गए हैं और कुछ का ईमान बिगाड़ते हैं।

19तो भी "ख़ुदा"की मज़बूत बुनियाद क़ायम रहती है ”और उस पर ये मुहर है “कि "ख़ुदावन्द" अपनों को पहचानता है; और जो कोई "ख़ुदावन्द" का नाम लेता है नारास्ती से बाज़ है।”

20बड़े घर में न सिर्फ़ सोने चाँदी ही के बरतन होते हैं बल्कि लकड़ी और मिट्टी के भी कुछ इज्जत और कुछ ज़िल्लत के लिए।

21पस, जो कोई इन से अलग होकर अपने आप को पाक करेगा वो इज्जत का बर्तन और मुक़द्दस बनेगा और मालिक के काम के लायक़ और हर नेक काम के लिए तैयार होगा।

22जवानी की ख़ुवाहिशों से भाग और जो पाक दिल के साथ"ख़ुदावन्द"से दुआ करते हैं; उन के साथ रास्तबाज़ी और ईमान और मुहब्बत और मेलमिलाप की चाहत हो।

23लेकिन बेवक़ूफ़ी और नादानी की हुज्जतों से किनारा कर क्यूँकि तू जानता है; कि उन से झगड़े पैदा होते हैं।

24और मुनासिब नहीं कि"ख़ुदावन्द" का बन्दा झगड़ा करे बल्कि सब के साथ रहम करे और ता'लीम देने के लायक़ और हलीम हो।

25और मुखालिफ़ों को हलीमी से सिखाया करे शायद"ख़ुदा"उन्हें तौबा की तौफ़ीक़ बख़्शे ताकि वो हक को पहचानें

26और"ख़ुदावन्द" के बन्दे के हाथ से"ख़ुदा"की मर्ज़ी के कैदी हो कर इब्लीस के फ़न्दे से छूटें।


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