1लेकिन ये जान रख कि आखिरी ज़माने में बुरे दिन आएँगे ।
2क्योंकि आदमी खुदग़र्ज़ एहसान फारमोश, शेखीबाज़, मग़रूर बदगो, माँ बाप का नाफ़रमान नाशुक्रा नापाक। जाती मुहब्बत से खाली संगदिल, तोहमत लगानेवाला,
3जाती मुहब्बत से खाली संगदिल तोहमत लगानेवाले बेज़ब्त तुन्द मिज़ाज नेकी के दुश्मन।
4दग़ाबाज़, ढीठ, घमन्ड करने वाले, "ख़ुदा" की निस्बत ऐश- ओ -इशरत को ज्यादा दोस्त रखने वाले होंगे।
5वो दीनदारी का दिखावा तो रखेंगे मगर उस पर अमल न करेंगे ऐसों से भी किनारा करना।
6इन ही में से वो लोग हैं जो घरों में दबे पाँव घुस आते हैं और उन बद चलन औरतों को क़ाबू में कर लेते हैं जो गुनाहों में दबी हुई हैं और तरह तरह की ख़्वाहिशों के बस में हैं।
7और हमेशा ता'लीम पाती रहती हैं मगर हक़ की पहचान उन तक कभी नहीं पहुँचती।
8और जिस तरह के यत्रेस और यम्ब्रेस ने मूसा की मुख़ालिफ़त की थी ये ऐसे आदमी हैं जिनकी अक़्ल बिगड़ी हुई है और वो ईमान के ऐ'तिबार से खाली हैं।
9मगर इस से ज्यादा न बढ़ सकेंगे इस वास्ते कि इन की नादानी सब आदमियों पर ज़ाहिर हो जाएगी जैसे उन की भी हो गई थी।
10लेकिन तू ने ता'लीम, चाल चलन, इरादा ,ईमान, तहम्मुल, मुहब्बत, सब्र, सताए जाने और दु:ख उठाने में मेरी पैरवी की।
11या'नी ऐसे दु:खों में जो अन्ताकिया और इकुनियुस और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े और दु:खों में भी जो मैने उठाए हैं मगर "ख़ुदावन्द" ने मुझे उन सब से छुड़ा लिया।
12बल्कि जितने "मसीह में दीनदारी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारना चाहते हैं वो सब सताए जाएँगे।
13और बुरे और धोकेबाज़ आदमी फरेब देते और फ़रेब खाते हुए बिगड़ते चले जाएँगे।
14मगर तू उन बातों पर जो तू ने सीखी थी, और जिनका यक़ीन तुझे दिलाया गया था, ये जान कर क़ायम रह कर तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था।
15और तू बचपन से उन पाक नविश्तों से वाक़िफ़ है, जो तुझे "मसीह ईसा " पर ईमान लाने से नजात हासिल करने के लिए दानाई बख़्श सकते हैं।
16हर एक सहीफ़ा जो "ख़ुदा"के इल्हाम से है ता'लीम और इल्ज़ाम और इस्लाह और रास्तबाज़ी में तरबियत करने के लिए फ़ाइदे मन्द भी है।
17ताकि मर्दे "ख़ुदा"कामिल बने और हर एक नेक काम के लिए बिल्कुल तैयार हो जाए।