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1देखो, मैं अपने दूत को भेजता हूँ, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा, और प्रभु, जिसे तुम ढूंढ़ते हो, वह अचानक अपने मन्‍दिर में आ जाएगा; हां वाचा का वह दूत, जिसे तुम चाहते हो, सुनो, वह आता है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। (मत्ती. 11:3,10 ,मर 1:2 लूका 1:17,76,लूका 7:19,27 यूहन्ना 3:28)

2परन्‍तु उसके आने के दिन को कौन सह सकेगा? और जब वह दिखाई दे, तब कौन खड़ा रह सकेगा? क्‍योंकि वह सोनार की आग और धोबी के साबुन के समान है। (प्रका 6:17)

3वह रूपे का तानेवाला और शुद्ध करनेवाला बनेगा, और लेवियों को शुद्ध करेगा और उनको सोने रूपे की नाईं निर्मल करेगा, तब वे यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ाएंगे। (1 पत 1:7)

4तब यहूदा और यरूशलेम की भेंट यहोवा को ऐसी भाएगी, जैसी पहिले दिनों में और प्राचीनकाल में भाती थी।।

5तब मैं न्‍याय करने को तुम्‍हारे निकट आऊँगा; और टोन्‍हों, और व्‍यभिचारियों, और झूठी किरिया खानेवालों के विरूद्ध, और जो मजदूर की मजदूरी को दबाते, और विधवा और अनाथों पर अन्‍धेर करते, और परदेशी का न्‍याय बिगाड़ते, और मेरा भय नहीं मानते, उन सभों के विरूद्ध मैं तुरन्‍त साक्षी दूँगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। (याकू 5:4)

6क्‍योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्‍तान तुम नाश नहीं हुए।

7अपने पुरखाओं के दिनों से तुम लोग मेरी विधियों से हटते आए हो, और उनका पालन नहीं करते। तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्‍हारी ओर फिरूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है; परन्‍तु तुम पूछते हो, हम किस बात में फिरें? (याकू 4:8)

8क्‍या मनुष्‍य परमेश्‍वर को धोखा दे सकता है? देखो, तुम मुझ को धोखा देते हो, और तौभी पूछते हो कि हम ने किस बात में तुझे लूटा है? दशमांश और उठाने की भेंटों में।

9तुम पर भारी शाप पड़ा है, क्‍योंकि तुम मुझे लूटते हो; वरन सारी जाति ऐसा करती है।

10सारे दशवांश भण्‍डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्‍तु रहे; और सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्‍हारे लिये खोलकर तुम्‍हारे ऊपर अपरम्‍पार आशीष की वर्षा करता हूँ कि नहीं।

11मैं तुम्‍हारे लिये नाश करनेवाले को ऐसा घुड़कूँगा कि वह तुम्‍हारी भूमि की उपज नाश न करेगा, और तुम्‍हारी दाखलताओं के फल कच्‍चे न गिरेंगे, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।।

12तब सारी जातियां तुम को धन्‍य कहेंगी, क्‍योंकि तुम्‍हारा देश** मनोहर देश होगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।।

13यहोवा यह कहता है, तुम ने मेरे विरूद्ध ढिठाई की बातें कही हैं। परन्‍तु तुम पूछते हो, हम ने तेरे विरूद्ध में क्‍या कहा है?

14तुम ने कहा है कि परमेश्‍वर की सेवा करनी व्‍यर्थ है। हम ने जो उसके बताए हुए कामों को पूरा किया और सेनाओं के यहोवा के डर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए चले हैं, इस से क्‍या लाभ हुआ?

15अब से हम अभिमानी लोगों को धन्‍य कहते हैं; क्‍योंकि दुराचारी तो सफल बन गए हैं, वरन वे परमेश्‍वर की परीक्षा करने पर भी बच गए हैं।।

16तब यहोवा का भय माननेवालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्‍यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्‍मान करते थे, उनके स्‍मरण के निमित्त उसके साम्‍हने एक पुस्‍तक लिखी जाती थी।

17सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मै उन से ऐसी कोमलता करूँगा जैसी कोई अपने सेवा करनेवाले पुत्र से करे।

18तब तुम फिरकर धर्मी और दुष्‍ट का भेद, अर्थात् जो परमेश्‍वर की सेवा करता है, और जो उसकी सेवा नहीं करता, उन दोनों का भेद पहिचान सकोगे।।



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