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1फिर जो दूत मुझ से बातें करता था, उसने आकर मुझे ऐसा जगाया जैसा कोई नींद से जगाया जाए।

2और उसने मुझ से पूछा, “तुझे क्‍या देख पड़ता है?” मैं ने कहा, “एक दीवट है, जो सम्‍पूर्ण सोने की है, और उसका कटोरा उसकी चोटी पर है, और उस पर उसके सात दीपक है; जिन के ऊपर बत्ती के लिये सात सात नालियाँ हैं।(प्रकाशन 1:12, 4:5)

3और दीवट के पास जैतून के दो वृक्ष हैं, एक उस कटोरे की दाहिनी ओर, और दूसरा उसकी बाईं ओर।”

4तब मैं ने उस दूत से जो मुझ से बातें करता था, पूछा, “हे मेरे प्रभु, ये क्‍या हैं?”

5जो दूत मुझ से बातें करता था, उसने मुझ को उत्तर दिया, “क्‍या तू नहीं जानता कि ये क्‍या हैं?” मैं ने कहा, “हे मेरे प्रभु मैं नहीं जानता।”

6तब उसने मुझे उत्तर देकर कहा, “जरूब्‍बाबेल के लिये यहोवा का यह वचन है: न तो बल से, और न शक्ति से, परन्‍तु मेरे आत्‍मा के द्वारा होगा, मुझ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।

7हे बड़े पहाड़, तू क्‍या है? जरूब्‍बाबेल के सामने तू मैदान हो जाएगा; और वह चोटी का पत्‍थर यह पुकारते हुए आएगा, उस पर अनुग्रह हो, अनुग्रह!”

8फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,

9“जरूब्‍बाबेल ने अपने हाथों से इस भवन की नीव डाली है, और वही अपने हाथों से उसको तैयार भी करेगा। तब तू जानेगा कि सेनाओं के यहोवा ने मुझे तुम्‍हारे पास भेजा है।

10क्‍योंकि किस ने छोटी बातों का दिन तुच्‍छ जाना है? यहोवा अपनी इन सातों आँखों से सारी पृथ्‍वी पर दृष्‍टि करके साहुल को जरूब्‍बाबेल के हाथ में देखेगा, और आनन्‍दित होगा।”(प्रका. 5:6, नीति 15:3)

11तब मैं ने उससे फिर पूछा, “ये दो जैतून के वृक्ष क्‍या हैं जो दीवट की दहिनी-बाई ओर हैं?”(प्रका. 11:4)

12फिर मैं ने दूसरी बार उससे पूछा, “जैतून की दोनों डालियाँ क्‍या हैं जो सोने की दोनों नालियों के द्वारा अपने में से सुनहरा तेल उण्‍डेलती हैं?”

13उसने मुझ से कहा, “क्‍या तू नहीं जानता कि ये क्‍या हैं?” मैं ने कहा, “हे मेरे प्रभु मैं नहीं जानता।”

14तब उसने कहा, “इनका अर्थ ताजे तेल से भरे हुए वे दो पुरूष हैं** जो सारी पृथ्‍वी के परमेश्‍वर के पास हाज़िर रहते हैं।”(लूका 1:19, जक 6:5)



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