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1यहोवा का वचन जो पतूएल के पुत्र योएल के पास पहुँचा, वह यह है:

2हे पुरनियों, सुनो, हे देश के सब रहनेवालों, कान लगाकर सुनो! क्या ऐसी बात तुम्हारे दिनों में, वा तुम्हारे पुरखाओं के दिनों में कभी हुई है?

3अपने बच्चों से इसका वर्णन करो, और वे अपने बच्चों से, और फिर उनके बच्चों, आनेवाली पीढ़ी के लोगों से।

4जो कुछ गाजाम नाम टिड्डी से बचा; उसे अर्बे नाम टिड्डी ने खा लिया। और जो कुछ अर्बे नामक टिड्डी से बचा, उसे येलेक नाम टिड्डी ने खा लिया, और जो कुछ येलेक नाम टिड्डी से बचा, उसे हासील नाम टिड्डी ने खा लिया है।

5हे मतवालों, जाग उठो, और रोओ; और हे सब दाखमधु पीनेवालों, नये दाखमधु के कारण हाय, हाय, करो; क्योंकि वह तुम को अब न मिलेगा।।

6देखो, मेरे देश पर एक जाति ने चढ़ाई की है, वह सामर्थी है, और उसके लोग अनगिनित हैं; उसके दाँत सिंह के से, और डाढ़ें सिहनी की सी हैं।(प्रकाशन 9:8)

7उस ने मेरी दाखलता को उजाड़ दिया, और मेरे अंजीर के वृक्ष को तोड़ डाला है; उस ने उसकी सब छाल छीलकर उसे गिरा दिया है, और उसकी डालियां छिलने से सफेद हो गई हैं।

8जैसे युवती अपने पति के लिये कटि में टाट बाँन्धे हुए विलाप करती है, वैसे ही तुम भी विलाप करो।

9यहोवा के भवन में न तो अन्नबलि और न अर्ध आता है। उसके टहलुए जो याजक हैं, वे विलाप कर रहे हैं।

10खेती मारी गई, भूमि विलाप करती है; क्योंकि अन्न नाश हो गया, नया दाखमधु सूख गया, तेल भी सूख गया है।

11हे किसानों, लज्जित हो, हे दाख की बारी के मालियों, गेहूँ और जव के लिये हाय, हाय करो; क्योंकि खेती मारी गई है

12दाखलता सूख गई, और अंजीर का वृक्ष कुम्हला गया है अनार, ताड़, सेव,वरन, मैदान के सब वृक्ष सूख गए हैं; और मनुष्य का हर्ष जाता रहा है।

13हे याजकों, कटि में टाट बाँन्धकर छाती पीट-पीट के रोओ! हे वेदी के टहलुओं, हाय, हाय, करो। हे मेरे परमेश्वर के टहलुओं, आओ, टाट ओढ़े हुए रात बिताओ! क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर के भवन में अन्नबलि और अर्ध अब नहीं आते।

14उपवास का दिन ठहराओ, महासभा का प्रचार करो। पुरनियों को, वरन देश के सब रहनेवालों को भी अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में इकट्ठे करके उसकी दोहाई दो।

15उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन होकर आएगा।

16कया भोजनवस्तुऍ हमारे देखते नाश नहीं हुईं? कया हमारे परमेश्वर के भवन का आनन्द और मगन जाता नहीं रहा?

17बीज ढेलों के नीचे झुलस गए, भण्डार सूने पड़े हैं; खत्ते गिर पड़े हैं, क्योंकि खेती मारी गई।

18पशु कैसे कराहते हैं? झुण्ड के झुण्ड गाय-बैल विकल हैं, क्योंकि उनके लिये चराई नहीं रही; और झुण्ड के झुण्ड भेड़-बकरियाँ पाप का फल भोग रही हैं।

19हे यहोवा, मैं तेरी दोहाई देता हूँ , क्योंकि जंगल की चराइयाँ आग का कौर हो गईं, और मैदान के सब वृक्ष ज्वाला से जल गए।

20वन-पशु भी तेरे लिये हाँफते हैं, क्योंकि जल के सोते सूख गए, और जंगल की चराइयाँ आग का कौर हो गईं।



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