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1फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,

2“हे मनुष्‍य के सन्‍तान, सब वृक्षों में अंगूर की लता की क्‍या श्रेष्‍ठता है? अंगूर की शाखा जो जंगल के पेड़ों के बीच उत्‍पन्न होती है, उसमें क्‍या गुण है?

3क्‍या कोई वस्‍तु बनाने के लिये उसमें से लकड़ी ली जाती, या कोई बर्तन टाँगने के लिये उसमें से खूँटी बन सकती है?

4वह तो ईंधन बनाकर आग में झोंकी जाती है; उसके दोनों सिरे आग से जल जाते, और उसके बीच का भाग भस्‍म हो जाता है, क्‍या वह किसी भी काम की है?

5देख, जब वह बनी थी, तब भी वह किसी काम की न थी, फिर जब वह आग का ईंधन होकर भस्‍म हो गई है, तब किस काम की हो सकती है?

6इसलिये प्रभु यहोवा यों कहता है, जैसे जंगल के पेड़ों में से मैं अंगूर की लता को आग का ईंधन कर देता हूँ, वैसे ही मैं यरूशलेम के निवासियों को नाश कर दूँगा।

7मैं उनके विरुद्ध हूँगा, और वे एक आग में से निकलकर फिर दूसरी आग का ईंधन हो जाएँगे; और जब मैं उनसे विमुख हूँगा, तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।

8मैं उनका देश उजाड़ दूँगा, क्‍योंकि उन्होंने मुझसे विश्‍वासघात किया है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।”



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