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1“उसी समय मीकाएल नाम बड़ा प्रधान, जो तेरे जाति-भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है, वह उठेगा। तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्‍पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ होगा; परन्‍तु उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम परमेश्‍वर की पुस्‍तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे।

2और जो भूमि के नीचे** सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्‍यन्‍त घिनौने ठहरने के लिये।

3तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्‍डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा की नाई प्रकाशमान रहेंगे।

4परन्‍तु हे दानिय्‍येल, तू इस पुस्‍तक पर मुहर करके इन वचनों को अन्‍त समय तक के लिये बन्‍द रख। और बहुत लोग पूछ-पाछ और ढूँढ -ढाँढ करेंगे, और इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा।”

5यह सब सुन, मुझ दानिय्‍येल ने दृष्‍टि करके क्‍या देखा कि और दो पुरूष खड़ें हैं, एक तो नदी के इस तीर पर, और दूसरा नदी के उस तीर पर है।

6तब जो पुरूष सन का वस्‍त्र पहिने हुए नदी के जल के ऊपर था, उससे उन पुरूषों में से एक ने पूछा, “इन आश्‍चर्यकर्मों का अन्‍त कब तक होगा?”

7तब जो पुरूष सन का वस्‍त्र पहिने हुए नदी के जल के ऊपर था, उसने मेरे सुनते दहिना और बायाँ अपने दोनों हाथ स्‍वर्ग की ओर उठाकर, सदा जीवित रहनेवाले की शपथ खाकर कहा, “यह दशा साढ़े तीन काल तक ही रहेगी; और जब पवित्र प्रजा की शक्ति टूटते-टूटते समाप्‍त हो जाएगी, तब ये बातें पूरी होंगी।”

8यह बात मै सुनता तो था परन्‍तु कुछ न समझा। तब मैंने कहा, “हे मेरे प्रभु, इन बातों का अन्‍तफल क्‍या होगा?”

9उसने कहा, “हे दानिय्‍येल चला जा; क्‍योंकि ये बातें अन्‍त समय के लिये बन्‍द हैं और इन पर मुहर दी हुई है।

10बहुत लोग तो अपने अपने को निर्मल और उजले करेंगे, और स्‍वच्‍छ हो जाएँगे; परन्‍तु दुष्‍ट लोग दुष्‍टता ही करते रहेंगे; और दुष्‍टों में से कोई ये बातें न समझेगा; परन्‍तु जो बुद्धिमान है वे ही समझेंगे।

11जब से नित्‍य होमबलि उठाई जाएगी, और वह घिनौनी वस्‍तु जो उजाड़ करा देती है, स्‍थापित की जाएगी, तब से बारह सौ नब्‍बे दिन बीतेंगे।

12क्‍या ही धन्‍य है वह, जो धीरज धरकर तेरह सौ पैंतीस दिन के अन्‍त तक भी पहूँचे।

13अब तू जाकर अन्‍त तक ठहरा रह; और तू विश्राम करता रहेगा; और उन दिनों के अन्‍त में तू अपने निज भाग पर खड़ा होगा।”



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