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1ऐ भाइयों; मेरे दिल की आरज़ू और उन के लिए ख़ुदा से मेरी दुआ है कि वो नजात पाएँ।

2क्यूँकि मैं उनका गवाह हूँ कि वो ख़ुदा के बारे में ग़ैरत तो रखते हैं; मगर समझ के साथ नहीं।

3इसलिए कि वो खुदा की रास्तबाज़ी से नावाक़िफ़ हो कर और अपनी रास्तबाज़ी क़ायम करने की कोशिश करके ख़ुदा की रास्तबाज़ी के ताबे न हुए।

4क्यूँकि हर एक ईमान लानेवाले की रास्तबाज़ी के लिए मसीह शरी'अत का अंजाम है।

5चुनाँचे मूसा ने ये लिखा है “कि जो शख़्स उस रास्तबाज़ी पर अमल करता है जो शरी'अत से है वो उसी की वजह से ज़िन्दा रहेगा। ”

6अगर जो रास्तबाज़ी ईमान से है वो यूँ कहती है“तू अपने दिल में ये न कह‘कि आसमान पर कौन चढ़ेगा? या'नी मसीह के उतार लाने को। ’

7या गहराव में कौन उतरेगा? यानी मसीह को मुर्दो में से जिला कर ऊपर लाने को। ’

8बल्कि क्या कहती है ; ये कि कलाम तेरे नज़दीक है “बल्कि तेरे मुँह और तेरे दिल में है कि ये वही ईमान का कलाम है जिसका हम एलान करते हैं।”

9कि अगर तू अपनी ज़बान से ईसा' के ख़ुदावन्द होने का इक़रार करे और अपने दिल से ईमान लाए कि ख़ुदा ने उसे मुर्दों में से जिलाया तो नजात पाएगा।

10क्यूँकि रास्तबाज़ी के लिए ईमान लाना दिल से होता है और नजात के लिए इक़रार मुँह से किया जाता है।

11चुनाँचे किताब'ऐ मुक़द्दस ये कहती है “जो कोई उस पर ईमान लाएगा वो शर्मिन्दा न होगा।”

12क्यूँकि यहूदियों और यूनानियों में कुछ फर्क नहीं इसलिए कि वही सब का ख़ुदावन्द है और अपने सब दुआ करनेवालों के लिए फ़य्याज़ है।

13क्यूँकि "जो कोई ख़ुदावन्द का नाम लेगा नजात पाएगा ।”

14मगर जिस पर वो ईमान नहीं लाए उस से क्यूँकर दुआ करें? और जिसका ज़िक्र उन्होंने सुना नहीं उस पर ईमान क्यूँ लाएँ? और बग़ैर एलान करने वाले की क्यूँकर सुनें?

15और जब तक वो भेजे न जाएँ एलान क्यूँकर करें? चुनाचे लिखा है “क्या ही ख़ुशनुमा हैं उनके क़दम जो अच्छी चीज़ों की ख़ुशख़बरी देते हैं।”

16लेकिन सब ने इस ख़ुशख़बरी पर कान न धरा चुनाँचे यसायाह कहता है“ऐ ख़ुदावन्द हमारे पैग़ाम का किसने यक़ीन किया है?”

17पस ईमान सुनने से पैदा होता है और सुनना मसीह के कलाम से।

18लेकिन मैं कहता हूँ, क्या उन्होंने नहीं सुना? चुनाँचे लिखा है उनकी आवाज़ तमाम रू'ए ज़मीन पर और उनकी बातें दुनिया की इन्तिहा तक पहुँची”

19फिर मैं कहता हूँ ,क्या इस्राईल वाक़िफ़ न था? पहले तो मूसा कहता है उन से तुम को ग़ैरत दिलाऊँगा जो क़ौम ही नहीं एक नादान क़ौम से तुम को गु़स्सा दिलाऊँगा। ।”

20फिर यसायाह बड़ा दिलेर होकर ये कहता है जिन्होंने मुझे नहीं ढूंढा उन्होंने मुझे पा लिया जिन्होंने मुझ से नहीं पूछा उन पर में ज़ाहिर हो गया।

21लेकिन इस्राईल के हक़ में यूँ कहता है “मैं दिन भर एक नाफ़रमान और हुज्जती उम्मत की तरफ़ अपने हाथ बढ़ाए रहा।”


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