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1क्यूँकि आस्मान की बादशाही उस घर के मालिक की तरह है, जो सवेरे निकला ताकि अपने बाग़ में मज़दूर लगाए।

2उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ तय करके उन्हें अपने बाग़ में भेज दिया।

3फिर पहर दिन चढ़ने के क़रीब निकल कर उसने औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखा।

4और उन से कहा, ‘तुम भी बाग़ में चले जाओ; जो वाजिब है तुम को दूँगा; पस वो चले गए।’

5फिर उसने दोपहर और तीसरे पहर के क़रीब निकल कर वैसा ही किया।

6और कोई एक घंटा दिन रहे फिर निकल कर औरों को खड़े पाया,और उनसे कहा, तुम क्यूँ यहाँ तमाम दिन बेकार खड़े हो?’

7उन्होंने उससे कहा ‘इस लिए कि किसी ने हम को मज़दूरी पर नहीं लगाया।’उस ने उनसे कहा, ‘तुम भी बाग़ में चले जाओ।’

8जब शाम हुई तो बाग़ के मालिक ने अपने कारिन्दे से कहा ‘मज़दूरों को बुलाओ और पिछलों से लेकर पहलों तक उनकी मज़दूरी दे दो,।’

9जब वो आए जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उनको एक एक दीनार मिला।

10जब पहले मज़दूर आए तो उन्होंने ये समझा कि हम को ज्यादा मिलेगा; और उनको भी एक ही दीनार मिला।

11जब मिला तो घर के मालिक से ये कह कर शिकायत करने लगे।

12"इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया है और तूने इनको हमारे बराबर कर दिया‘जिन्होंने दिन भर बोझ उठाया; और सख़्त धूप सही।"

13उसने जवाब देकर उन में से एक से कहा,‘मियाँ मैं तेरे साथ बे इन्साफ़ी नहीं करता; क्या तेरा मुझ से एक दीनार नहीं ठहरा था।?

14जो तेरा है उठा ले और चला जा मेरी मर्ज़ी ये है कि जितना तुझे देता हूँ इस पिछले को भी उतना ही दूँ।

15क्या मुझे ठीक नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ? तू इसलिए कि मैं नेक हूँ बुरी नज़र से देखता है।’

16इसी तरह आख़िर पहले हो जाएँगे; और पहले आख़िर।”

17और यरूशलीम जाते हुए ईसा' बारह शागिर्दों को अलग ले गया; और रास्ते में उनसे कहा।

18“देखो; हम यरूशलीम को जाते हैं; और इबने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा; और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे।

19और उसे ग़ैर कौमों के हवाले करेंगे ताकि वो उसे ठट्ठों में उड़ाएँ, और कोड़े मारें और मस्लूब करें और वो तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा।”

20उस वक़्त ज़ब्दी के बेटों की माँ ने अपने बेटों के साथ उसके सामने आकर सिज्दा किया और उससे कुछ अर्ज़ करने लगी |

21उसने उससे कहा “तू क्या चाहती है?” उस ने उससे कहा “फ़रमा कि ये मेरे दोनों बेटे तेरी बादशाही में तेरी दहनी और बाईं तरफ़ बैठें।”

22ईसा' ने जवाब में कहा, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो ?जो प्याला मैं पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो?“उन्होंने उससे कहा पी सकते हैं।

23उसने उनसे कहा “मेरा प्याला तो पियोगे, लेकिन अपने दहने बाएँ किसी को बिठाना मेरा काम नहीं; मगर जिनके लिए मेरे बाप की तरफ़ से तैय्यार किया गया उन्ही के लिए है।”

24जब शागिर्दों ने ये सुना तो उन दोनों भाइयों से ख़फ़ा हुए।

25मगर ईसा' ने उन्हें पास बुलाकर कहा “तुम जानते हो कि ग़ैर कौमों के सरदार उन पर हुक्म चलाते और अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।

26तुम में ऐसा न होगा; बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहे वो तुम्हारा ख़ादिम बने।

27और जो तुम में अव्वल होना चाहे वो तुम्हारा गुलांम बने।

28चुनाँचे; इबने आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले; बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतों के बदले फ़िदिये में दें।”

29जब वो यरीहू से निकल रहे थे; एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।

30और देखो; दो अँधों ने जो रास्ते के किनारे बैठे थे ये सुनकर कि "ईसा" जा रहा है चिल्ला कर कहा "ऐ ख़ुदावन्द" इबने दाऊद हम पर रहम कर।”

31लोगों ने उन्हें डांटा कि चुप रहें “लेकिन वो और भी चिल्ला कर कहने लगे!”ऐ ख़ुदावन्द" इबने दाऊद हम पर रहम कर।”

32ईसा' ने खड़े होकर उन्हें बुलाया और कहा “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?”

33उन्होंने उससे कहा “ऐ ख़ुदावन्द" हमारी आँखें खुल जाएँ।”

34ईसा' को तरस आया। और उसने उन की आँखों को छुआ और वो फ़ौरन देखने लगे ; और उसके पीछे हो लिए।


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