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1और काल मुल्क में और भी शख्त हो गया |

2और यूँ हुआ के जब उस ग़ल्ले को जिसे मिस्र से लाए थे, खा चुके तो उनके बाप ने उनसे कहा, "जाकर हमारे लिए फिर कुछ अनाज मोल ले आओ।"

3तब यहूदाह ने उसे कहा कि उस शख़्स ने हम को निहायत ताकीद से कह दिया था कि तुम मेरा मुँह न देखोगे, जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो।

4सो अगर तू हमारे भाई को हमारे साथ भेज दे, तो हम जाएँगे और तेरे लिए अनाज मोल लाएँगे।

5और अगर तू उसे न भेजे तो हम नहीं जाएँगे; क्यूंके उस शख़्स ने कह दिया है कि तुम मेरा मुँह न देखोगे जब तक तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न हो'।

6तब इस्राईल ने कहा कि तुम ने मुझ से क्यूं ये बदसुलूकी की, के उस शख़्स को बता दिया के हमारा एक भाई और भी है?

7उन्होंने कहा, "उस शख़्स ने बजिद्द हो कर हमारा और हमारे ख़ान्दान का हाल पूछा कि 'क्या तुम्हारा बाप अब तक जीता है? और क्या तुम्हारा कोई और भाई है?' तो हम ने इन सवालों के मुताबिक़ उसे बता दिया। हम क्या जानते थे के वो कहेगा, 'अपने भाई को ले आओ'।"

8तब यहूदाह ने अपने बाप इस्राईल से कहा कि उस लड़के को मेरे साथ कर दे तो हम चले जाएँगे; ताके हम और तू और हमारे बाल बच्चे ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।

9और मैं उसका ज़ामिन होता हूँ, तू उसको मेरे हाथ से वापस माँगना। अगर मैं उसे तेरे पास पहुँचा कर सामने खड़ा न कर दूँ, तो मैं हमेशा के लिए गुनहगार ठहरूंगा।

10अगर हम देर न लगाते तो अब तक दूसरी दफ़ा' लौट कर आ भी जाते।"

11तब उनके बाप इस्राईल ने उनसे कहा, "अगर यही बात है तो ऐसा करो के अपने बर्तनों में इस मुल्क की मशहूर पैदावार में से कुछ उस शख़्स के लिए नज़राना लेते जाओ; जैसे थोड़ा सा रौग़ान-ए-बलसान, थोड़ा सा शहद, कुछ गर्म मसाल्हे, और मुर्र और पिस्ता और बादाम,

12और दूना दाम अपने हाथ में ले लो, और वो नकदी जो फेर दी गई और तुम्हारे बोरों के मुँह में रखी मिली अपने साथ वापस ले जाओ; क्यूँके शायद भूल हो गई होगी।

13और अपने भाई को भी साथ लो, और उठ कर फिर उस शख़्स के पास जाओ।

14और ख़ुदा-ए-क़ादिर उस शख़्स को तुम पर महरबान करे, ताके वो तुम्हारे दूसरे भाई को और बिनयमीन को तुम्हारे साथ भेज दे। मैं अगर बे-औलाद हुआ तो हुआ।"

15तब उन्होंने नज़राना लिया और दूना दाम भी हाथ में ले लिया, और बिनयमीन को लेकर चल पड़े; और मिस्र पहुँच कर यूसुफ़ के सामने जा खड़े हुए।

16जब यूसुफ़ ने बिनयमीन को उनके साथ देखा तो उसने अपने घर के मुन्तज़िम से कहा, "इन आदमियों को घर में ले जा, और कोई जानवर ज़बह करके खाना तैयार करवा; क्यूँके ये आदमी दोपहर को मेरे साथ खाना खाएँगे।"

17उस शख़्स ने जैसा यूसुफ़ ने फ़रमाया था किया, और इन आदमियों को यूसुफ़ के घर में ले गया।

18जब इनको यूसुफ़ के घर में पहुँचा दिया तो डर के मारे कहने लगे, "वो नकदी जो पहली दफ़ा' हमारे बोरों में रख कर वापस कर दी गई थी, उसी के सबब से हम को अन्दर करवा दिया है; ताके उसे हमारे खिलाफ़ बहाना मिल जाए और वो हम पर हमला करके हम को गुलाम बना ले और हमारे गधों को छीन ले।"

19और वो यूसुफ़ के घर के मुन्तज़िम के पास गए और दरवाज़े पर खड़े होकर उससे कहने लगे,

20"जनाब, हम पहले भी यहाँ अनाज मील लेने आए थे;

21और यूँ हुआ के जब हम ने मंज़िल पर उतर कर अपने बोरों को खोला, तो अपनी अपनी पूरी तौली हुई नकदी अपने अपने बोरे के मुँह में रखी देखी, सो हम उसे अपने साथ वापस लेते आए हैं।

22और हम अनाज मोल लेने को और भी नकदी साथ लाए हैं, ये हम नहीं जानते के हमारी नकदी किसने हमारे बोरों में रख दी।"

23उसने कहा कि तुम्हारी सलामती हो, मत डरो! तुम्हारे ख़ुदा और तुम्हारे बाप के ख़ुदा ने तुम्हारे बोरों में तुम को ख़ज़ाना दिया होगा, मुझे तो तुम्हारी नकदी मिल चुकी। फिर वो शमा'ऊन को निकाल कर उनके पास ले आया।

24और उस शख़्स ने उनको यूसुफ़ के घर में लाकर पानी दिया, और उन्होंने अपने पाँव धोए; और उनके गधों को चारा दिया।

25फिर उन्होंने यूसुफ़ के इन्तिज़ार में के वो दोपहर को आएगा, नज़राना तैयार करके रख्खा; क्यूँके उन्होंने सुना था के उनको वहीं रोटी खानी है।

26जब यूसुफ़ घर आया, तो वो उस नज़राने को जो उनके पास था उसके सामने ले गए, और ज़मीन पर झुक कर उसके हुजूर आदाब बजा लाए।

27उसने उनसे ख़ैर-ओ-'आफियत पूछी और कहा कि तुम्हारा बूढ़ा बाप जिसका तुम ने ज़िक्र किया था अच्छा तो है? क्या वो अब तक जीता है?

28उन्होंने जवाब दिया, "तेरा खादिम हमारा बाप रखैरियत से है; और अब तक जीता है।" फिर वो सिर झुका-झुका कर उसके हुजूर आदाब बजा लाए।

29फिर उसने आँख उठा कर अपने भाई बिनयमीन को जो उसकी माँ का बेटा था, देखा और कहा कि तुम्हारा सबसे छोटा भाई जिसका जिक्र तुम ने मुझ से किया था यही है? फिर कहा, "ऐ मेरे बेटे! ख़ुदा तुझ पर महरबान रहे।"

30तब यूसुफ़ ने जल्दी की क्यूँके भाई को देख कर उसका जी भर आया, और वो चाहता था के कहीं जाकर रोए। सी वो अपनी कोठरी में जा कर वहाँ रोने लगा।

31फिर वो अपना मुँह धोकर बाहर निकला और अपने को ज़ब्त करके हुक्म दिया कि खाना चुनो।

32और उन्होंने उसके लिए अलग और उनके लिए जुदा, और मिस्रियों के लिए, जो उसके साथ खाते थे, जुदा खाना चुना; क्यूँके मिस्र के लोग इब्रानियों के साथ खाना नहीं खा सकते थे, क्यूँके मिस्रियों को इससे कराहियत है।

33और यूसुफ़ के भाई उसके सामने तरतीबवार अपनी उम्र की बड़ाई और छोटाई के मुताबिक़ बैठे और आपस में हैरान थे।

34फिर वो अपने सामने से खाना उठा कर हिस्से कर-कर के उनको देने लगा, और बिनयमीन का हिस्सा उनके हिस्सों से पाँच गुना ज़ियादा था। और उन्होंने मय पी और उसके साथ खुशी मनाई।


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