1पस जब उसके आराम में दाखिल होने का वादा बाकी है तो हमें डरना चाहिए ऐसा न हो कि तुम में से कोई रहा हुआ मालूम हो
2क्यूँकि हमें भी उन ही की तरह खुशखबरी सुनाई गई, लेकिन सुने हुए कलाम ने उनको इसलिए कुछ फ़ाइदा न दिया कि सुनने वालों के दिलों में ईमान के साथ न बैठा |
3और हम जो ईमान लाए, उस आराम में दाख़िल होते है; जिस तरह उसने कहा, "मैंने अपने गुस्से में कसम खाई कि ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे |" अगरचे दुनिया बनाने के वक़्त उसके काम हो चुके थे |
4चुनाँचे उसने सातवें दिन के बारे में किसी मौके' पर इस तरह कहा, "ख़ुदा ने अपने सब कामों को पूरा करके, सातवें दिन आराम किया |"
5और फिर इस मकाम पर है, "वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे |"
6पस जब ये बात बाक़ी है कि कुछ उस आराम में दाख़िल हों, और जिनको पहले खुशखबरी सुनाई गई थी वो नाफ़रमानी की वजह से दाख़िल न हुए,
7तो फिर एक ख़ास दिन ठहर कर इतनी मुद्दत के बा'द दा'ऊद की किताब में उसे "आज का दिन" कहता है |जैसा पहले कहा गया, "और आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख्त न करो |"
8और अगर ईसा' ने उन्हें आराम में दाख़िल किया होता, तो वो उसके बा'द दुसरे दिन का ज़िक्र न करता |
9पस ख़ुदा की उम्मत के लिए सब्त का आराम बाकी है'
10क्यूँकि जो उसके आराम में दाख़िल हुआ, उसने भी ख़ुदा की तरह अपने कामों को पूरा करके आराम किया |
11पस आओ, हम उस आराम में दाख़िल होने की कोशिश करें, ताकि उनकी तरह नाफ़रमानी कर के कोई शख्स गिर न पड़े |
12क्यूँकि खुदा का कलाम ज़िन्दा, और असरदार, और हर एक दोधारी तलवार से ज्यादा तेज़ है; और जान और रूह और बन्द और गुदे गुदे को जुदा करके गुज़र जाता है, और दिल के ख़यालों और इरादों को जाँचता है |
13और उससे मख्लूकात की कोई चीज़ छिपी नहीं, बल्कि जिससे हम को काम है उसकी नज़रों में सब चीज़ें खुली और बेपर्दा हैं |
14पस जब हमारा एक ऐसा बड़ा सरदार काहिन है जो आसमानों से गुज़र गया, या'नी ख़ुदा का बेटा ईसा' , तो आओ हम अपने इकरार पर कायम रहें |
15क्यूँकि हमारा ऐसा सरदार काहिन नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमारा हमदर्द न हो सके; बल्कि वो सब बातों में हमारी तरह आज़माया गया, तोभी बेगुनाह रहा |
16पस आओ, हम फज़ल के तख्त के पास दिलेरी से चलें, ताकि हम पर रहम हो और फ़ज़ल हासिल करें जो ज़रूरत के वक़्त हमारी मदद करे |