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1पस ऐ पाक भाइयों ! तुम जो आसमानी बुलावे में शरीक हो, उस रसूल और सरदार काहिन ईसा' पर गौर करो जिसका हम इकरार करते हैं;

2जो अपने मुकर्रर करनेवाले के हक में दियानतदार था, जिस तरह मूसा उसके सारे घर में था |

3क्यूँकि वो मूसा से इस कदर ज्यादा 'इज़्ज़त के लायक समझा गया, जिस कदर घर का बनानेवाला घर से ज्यादा इज़्ज़तदार होता है |

4चुनाँचे हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सब चीजें बनाईं वो खुदा है |

5मूसा तो उसके सारे घर में ख़ादिम की तरह दियानतदार रहा, ताकि आइन्दा बयान होनेवाली बातों की गवाही दे |

6लेकिन मसीह बेटे की तरह उसके घर का मालिक है, और उसका घर हम हैं; बशर्ते कि अपनी दिलेरी और उम्मीद का फ़ख्र आख़िर तक मज़बूती से कायम रख्खें |

7पस जिस तरह कि रूह-उल-क़ुद्दूस फ़रमाता है, "अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो,"

8तो अपने दिलों को सख्त न करो, जिस तरह गुस्सा दिलाने के वक़्त आज़माइश के दिन जंगल में किया था |

9जहाँ तुम्हारे बाप-दादा ने मुझे जाँचा और आजमाया और चालीस बरस तक मेरे काम देखे |

10इसलिए मैं उस पीढ़ी से नाराज़ हुआ, और कहा, 'इनके दिल हमेशा गुमराह होते रहते है, और उन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना |'

11चुनाँचे मैंने अपने गुस्से में कसम खाई, 'ये मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे' |"

12ऐ भाइयों! खबरदार ! तुम में से किसी का ऐसा बुरा और बे-ईमान दिल न हो, जो ज़िन्दा ख़ुदा से फिर जाए |

13बल्कि जिस रोज़ तक आज का दिन कहा जाता है, हर रोज़ आपस में नसीहत किया करो, ताकि तुम में से कोई गुनाह के धोके में आकर सख्त दिल न हो जाए |

14क्यूँकि हम मसीह में शरीक हुए हैं, बशर्ते कि अपने शुरुआत के भरोसे पर आख़िर तक मज़बूती से कायम रहें |

15चुनाँचे कहा जाता है, "अगर आज तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपने दिलों को सख्त न करो, जिस तरह कि गुस्सा दिलाने के वक़्त किया था |"

16किन लोगों ने आवाज़ सुन कर गुस्सा दिलाया? क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के वसीले से मिस्र से निकले थे?

17और वो किन लोगों से चालीस बरस तक नाराज़ रहा? क्या उनसे नहीं जिन्होंने गुनाह किया, और उनकी लाशें वीरान में पड़ी रहीं?

18और किनके बारे में उसने कसम खाई कि वो मेरे आराम में दाख़िल न होने पाएँगे, सिवा उनके जिन्होंने नाफ़रमानी की?

19गरज़ हम देखते हैं कि वो बे-ईमानी की वजह से दाख़िल न हो सके |


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