1इसलिए जो बातें हम ने सुनी, उन पर और भी दिल लगाकर गौर करना चाहिए, ताकि बहक कर उनसे दूर न चले जाएँ |
2क्यूँकि जो कलाम फरिश्तों के ज़रिए फ़रमाया गया था, जब वो कायम रहा और हर कुसूर और नाफ़रमानी का ठीक ठीक बदला मिला,
3तो इतनी बड़ी नजात से गाफ़िल रहकर हम क्यूँकर चल सकते हैं? जिसका बयान पहले खुदावन्द के वसीले से हुआ, और सुनने वालों से हमें पूरे-सबूत को पहुँचा |
4और साथ ही ख़ुदा भी अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक निशानों, और 'अजीब कामों, और तरह तरह के मो'जिज़ों, और रूह-उल-कुद्दूस की ने'मतों के जरि'ए से उसकी गवाही देता रहा |
5उसने उस आनेवाले जहान को जिसका हम ज़िक्र करते हैं, फरिश्तों के ताबे' नहीं किया |
6बल्कि किसी ने किसी मौके पर ये बयान किया है, "इन्सान क्या चीज़ है जो तू उसका ख्याल करता है ? या आदमज़ाद क्या है जो तू उस पर निगाह करता है ?
7तू ने उसे फरिश्तो से कुछ ही कम किया; तू ने उस पर जलाल और 'इज़्ज़त का ताज रख्खा, और अपने हाथों के कामों पर उसे इख्तियार बख्शा |
8तू ने सब चीज़ें ताबे' करके उसके क़दमों तले कर दी हैं |" पस जिस सूरत में उसने सब चीज़ें उसके ताबे' कर दीं, तो उसने कोई चीज़ ऐसी न छोड़ी जो उसके ताबे, न हो | मगर हम अब तक सब चीज़ें उसके ताबे' नहीं देखते |
9अलबत्ता उसको देखते हैं जो फरिश्तों से कुछ ही कम किया गया, या'नी ईसा ' को मौत का दुख सहने की वजह से जलाल और 'इज़्ज़त का ताज उसे पहनाया गया है, ताकि ख़ुदा के फ़ज़ल से वो हर एक आदमी के लिए मौत का मज़ा चखे |
10क्यूँकि जिसके लिए सब चीज़ें है और जिसके वसीले से सब चीज़ें हैं, उसको यही मुनासिब था कि जब बहुत से बेटों को जलाल में दाख़िल करे, तो उनकी नजात के बानी को दुखों के जरि'ए से कामिल कर ले |
11इसलिए कि पाक करने वाला और पाक होनेवाला सब एक ही नस्ल से हैं, इसी ज़रिए वो उन्हें भाई कहने से नहीं शरमाता |
12चुनाँचे वो फ़रमाता है, "तेरा नाम मैं अपने भाइयों से बयान करूँगा, कलीसिया में तेरी हम्द के गीत गाऊँगा |"
13और फिर ये, "देख मैं उस पर भरोसा रखूँगा | और फिर ये, "देख मैं उन लड़कों समेत जिन्हें ख़ुदा ने मुझे दिया |"
14पस जिस सूरत में कि लड़के खून और गोश्त में शरीक हैं, तो वो खुद भी उनकी तरह उनमें शरीक हुआ, ताकि मौत के वसीले से उसको जिसे मौत पर कुदरत हासिल थी, या'नी इब्लीस को, तबाह कर दे;
15और जो 'उम्र भर मौत के डर से गुलामी में गिरफ्तार रहे, उन्हें छुड़ा ले |
16क्यूँकि हकीक़त में वो फरिश्तों का नहीं, बल्कि अब्राहम की नस्ल का साथ देता है |
17पस उसको सब बातों में अपने भाइयों की तरह बनना ज़रुरी हुआ, ताकि उम्मत के गुनाहों का कफ्फारा देने के वास्ते, उन बातों में जो ख़ुदा से ता'अल्लुक़ रखती है,एक रहम दिल और दयानतदार सरदार काहिन बने |
18क्यूँकि जिस सूरत में उसने खुद की आज़माइश की हालत में दुख उठाया, तो वो उनकी भी मदद कर सकता है जिनकी आज़माइश होती है |