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1उन दिनों इस्राईल में कोई बादशाह उन ही दिनों में दान का क़बीला अपने रहने के लिए मीरास ढूंडता उनको उस दिन तक इस्राईल के कबीलों में मीरास नहीं मिली

2सो बनी दान ने अपने सारे शुमार में से पाँच सूर्माओं को सुर'आ और इस्ताल से रवाना किया, मुल्क का हाल दरियाफ़्त करें और उसे देखें भालें और उनसे कह दिया कि जाकर उस मुल्क को देखो भालो। वो इफ्राईम के कोहिस्तानी मुल्क में मीकाह के घर आए और वहीं उतरे।

3वो मीकाह के घर के पास पहुँचे, उस लावी जवान की आवाज़ पहचानी, वो उधर को मुड़ गए और उससे कहने को यहाँ कौन लाया? यहाँ क्या करता है और यहाँ तेरा क्या है?

4उनसे कहा, ने मुझ से ऐसा ऐसा सुलूक किया, मुझे नौकर रख लिया है और मैं उसका काहिन बना हूँ।

5उससे कहा, से ज़रा सलाह ले, हम को मालूम हो जाए के हमारा ये सफ़र मुबारक होगा या नहीं।

6काहिन ने उनसे कहा, से चले जाओ, तुम्हारा ये सफ़र ख़ुदावन्द के हुजूर है।

7सो वो पाँचों शख़्स चल निकले और लैस में आए। उन्होंने वहाँ के लोगों को देखा के सैदानियों की तरह कैसे इत्मीनान और अम्न और चैन से रहते हैं; उस मुल्क में कोई हाकिम नहीं था जो उनको किसी बात में ज़लील करता। वो सैदानियों से बहुत दूर थे, किसी से उनको कुछ सरोकार न था।

8वो सुर'आ और इस्ताल को अपने भाइयों के पास लौटे, उनके भाइयों ने उनसे पूछा, क्या कहते हो?

9उन पर चढ़ जाएँ; हम ने उस मुल्क को देखा के वो बहुत अच्छा है; तुम क्या चुप चाप ही रहे? चलकर उस मुल्क पर क़ाबिज़ होने में सुस्ती न करो।

10तुम चले तो एक मुतमइन क़ौम के पास पहुँचोगे, वो मुल्क वसी' ख़ुदा ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया वो ऐसी जगह है जिसमें दुनिया की किसी चीज़ की कमी नहीं।

11बनी दान के घराने के छ: मर्द जंग के हथियार बाँधे हुए और इस्ताल से रवाना हुए।

12जाकर यहूदाह के क्ररयत या'रीम में ख़ैमाज़न हुए। इसी लिए आज के दिन तक उस जगह को महने दान * ये करयत या'रीम के पीछेहै।

13वहाँ से चलकर इफ़ाईम के कोहिस्तानी मुल्क में पहुँचे और मीकाह के घर आए।

14वो पाँचों मर्द जो लैस के मुल्क का हाल दरियाफ़त करने गए थे, भाइयों से कहने लगे, तुम को ख़बर है, इन घरों में एक अफूद और तराफ़ीम और एक खुदा हुआ बुत और एक ढाला हुआ बुत है? अब सोच लो के तुम को क्या करना

15वो उस तरफ़ मुड़ गए और उस लावी जवान के मकान में यानी मीकाह के घर में दाखिल हुए, उससे ख़ैर-ओ-

16वो छ: मर्द जो बनी दान में से थे, के हथियार बाँधे फाटक पर खड़े

17उन पाँचों शख़्सों ने जो ज़मीन का हाल दरियाफ़्त करने को निकले थे, आकर खुदा हुआ बुत और अफूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत सब कुछ ले लिया, वो काहिन फाटक पर उन छ: मदों के साथ जो जंग के हथियार बाँधे थे खड़ा था।

18वो मीकाह के घर में घुस कर खुदा हुआ बुत और अफूद और तराफ़ीम और ढाला हुआ बुत ले आए, उस काहिन ने उनसे कहा, ये क्या करते हो?

19उन्होंने उसे कहा, पर हाथ रख ले; हमारे साथ चल और हमारा और काहिन बन। क्या तेरे लिए एक शख़्स के घर का काहिन होना अच्छा है, ये के तू बनी-इस्राईल के एक क़बीले और घराने का काहिन

20काहिन का दिल खुदे हुए बुत को लेकर लोगों के बीच चला गया।

21वो मुड़े और रवाना हुए, बाल बच्चों और चौपायों और अस्बाब को अपने आगे कर लिया।

22वो मीकाह के घर से दूर निकल जो लोग मीकाह के घर के पास के मकानों में रहते थे वों फ़राहम हुए और चलकर बनी दान को जा लिया।

23उन्होंने बनी दान को पुकारा, उन्होंने उधर मुँह करके मीकाह से कहा, को क्या हुआ जो तू इतने लोगों की जमियत को साथ लिए आ रहा है*?

24मेरे देवताओं को जिनको मैंने मेरे काहिन को साथ लेकर चले मेरे पास और क्या बाकी रहा? तुम मुझ से ये क्यूंकर कहते हो के तुझ को क्या हुआ?

25दान ने उससे कहा, आवाज़ हम लोगों में सुनाई न न हो के झल्ले मिज़ाज के आदमी तुझ पर के लोगों की जान के साथ खो

26सो बनी दान तो अपने रास्ते ही चले जब मीकाह ने देखा, वो उसके मुक़ाबिले में बड़े ज़बरदस्त हैं, वो मुड़ा और अपने घर को लौटा।

27वो मीकाह की बनवाई हुई चीज़ों को और उस काहिन को जो उसके हाँ लैस में ऐसे लोगों के पास पहुँचे और चैन से रहते थे; उनको तह तेग किया और शहर जला

28बचानेवाला कोई न था, वो सैदा से दूर था और ये लोग किसी आदमी से सरोकार नहीं रखते थे। और वो शहर बैत रहोब के पास की वादी में था। फिर उन्होंने वो शहर बनाया और उसमें रहने

29उस शहर का नाम अपने बाप दान के नाम पर जो इस्राईल की औलाद था दान ही रखा, पहले उस शहर का नाम लैस था।

30बनी दान ने वो खुदा हुआ बुत अपने लिए नस्ब कर लिया; यूनतन बिन जैरसोम बिन मूसा * उसके बेटे उस मुल्क की असीरी के दिन तक बनी दान के कबीले के काहिन बने रहे।

31सारे वक्त जब तक ख़ुदा का घर सैला में रहा, मीकाह के तराशे हुए बुत को जो उसने बनवाया था अपने लिए नस्ब किए रहे।


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