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1ने फिर ख़ुदावन्द के आगे बदी ख़ुदावन्द ने उनकी चालीस बरस तक फ़िलिस्तियों के हाथ में कर रखा।

2दानियों के घराने में सुर'आ का एक शख़्स था जिसका नाम मनोहा था। उसकी बीवी बाँझ थी, उसके कोई बच्चा न हुआ।

3ख़ुदावन्द के फ़िरिश्ते ने उस 'औरत को दिखाई देकर उससे कहा, बाँझ है और तेरे बच्चा नहीं तू हामिला होगी और तेरे बेटा

4सो ख़बरदार, या नशे की चीज़ न पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना।

5हामिला होगी और तेरे बेटा होगा। उसके सिर पर कभी उस्तरा न फिरे, के वो लड़का ही से ख़ुदा का नज़ीर होगा; वो इस्राईलियों को फ़िलिस्तियों के हाथ से रिहाई देना शुरू'

6ने जाकर अपने शौहर से कहा, मेरे पास आया, सूरत ख़ुदा के फ़िरिश्ते की सूरत की तरह निहायत मुहीब थी; मैंने उससे नहीं पूछा के तू कहाँ का है? न उसने मुझे अपना नाम बताया।

7उसने मुझ से कहा, हामिला होगी और तेरे बेटा तू मय या नशे की चीज़ न पीना, न कोई नापाक चीज़ खाना, वो लड़का पेट ही से अपने मरने के दिन तक ख़ुदा का नज़ीर

8मनोहा ने ख़ुदावन्द से दरख़्वास्त की और कहा, मेरे मालिक, तेरी मित्रत करता हूँ के वो जिसे तूने भेजा था, पास फिर आए और हम को सिखाए के हम उस लड़के से जो पैदा होने को है क्या करें।

9ख़ुदा ने मनोहा की 'अर्ज़ ख़ुदा का फ़िरिश्ता उस 'औरत के पास जब वो खेत में बैठी थी फिर आया, उसका शौहर मनोहा उसके साथ नहीं

10उस 'औरत ने जल्दी की और दौड़ कर अपने शौहर को ख़बर दी और उससे कहा, मर्द जो उस दिन मेरे पास आया था अब फिर मुझे दिखाई दिया।

11मनोहा उठ कर अपनी बीवी के पीछे पीछे चला, उस मर्द के पास आकर उससे कहा, तू त्रुही मर्द है जिसने इस से बातें की थीं? वुही हूँ।

12मनोहा ने कहा, बातें पूरी हों, उस लड़के का कैसा तौर-ओ- और क्या काम होगा?

13फ़िरिश्ते ने मनोहा से कहा, सब चीज़ों से जिनका ज़िक्र मैंने इस 'औरत से किया ये परहेज़ करे।

14ऐसी कोई चीज़ जो ताक से पैदा होती है न खाए, मय या नशे की चीज़ न पिए, न कोई नापाक चीज़ खाए; जो कुछ मैंने उसे हुक्म दिया ये उसे माने।

15ने ख़ुदावन्द के फ़िरिश्ते से कहा, हो तो हम तुझ को रोक लें, बकरी का एक बच्चा तेरे लिए तैयार करें।

16ख़ुदावन्द के फ़िरिश्ते ने मनोहा को जवाब दिया, तू मुझे रोक भी ले, भी मैं तेरी रोटी नहीं खाने अगर तू सोखतनी कुर्बानी तैयार करना चाहे, तुझे लाज़िम है के उसे ख़ुदावन्द के लिए गुज़रे। मनोहा नहीं जानता था के वो ख़ुदावन्द का फ़िरिश्ता है।)

17मनोहा ने ख़ुदावन्द के फ़िरिश्ते से कहा, नाम क्या है? जब तेरी बातें पूरी हों तो हम तेरा इकराम कर सकें।

18के फ़िरिश्ते ने उससे कहा, क्यूँ। मेरा नाम पूछता है? वो तो 'अजीब

19मनोहा ने बकरी का वो बच्चा म'ए उसकी नज़ की कुर्बानी के लेकर एक चटान पर ख़ुदावन्द के लिए उनको पेश किया, फ़िरिश्ते ने मनोहा और उसकी बीवी के देखते देखते 'अजीब काम किया।

20ऐसा हुआ के जब शोला' पर से आसमान की तरफ़ उठा, ख़ुदावन्द का फ़िरिश्ता मज़बह के शो'ले में होकर ऊपर चला गया, मनोहा और उसकी बीवी देखकर औधे मुँह ज़मीन पर गिरे।

21ख़ुदावन्द का फ़िरिश्ता न फिर मनोहा को दिखाई दिया न उसकी बीवी को। तब मनोहा ने जाना के वो ख़ुदावन्द का

22मनोहा ने अपनी बीवी से कहा, अब ज़रूर मर जाएँगे, हम ने ख़ुदा को देखा।

23बीवी ने उससे कहा, ख़ुदावन्द यही चाहता के हम को मार दे, सोख़्तनी और नज़ की कुर्बानी हमारे हाथ से क़बूल न करता, न हम को ये वाकि'आत दिखाता और न हम से ऐसी बातें

24उस 'औरत के एक बेटा हुआ और उसने उसका नाम समसून रख्खा; वो लड़का बढ़ा, खुदावन्द ने उसे बरकत दी।

25ख़ुदावन्द की रूह उसे महने और इस्ताल के दरमियान है तहरीक देने लगी।


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