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1इस वास्ते ऐ मेरे प्यारे भाइयों !जिनका मैं मुश्ताक़ हूँ जो मेरी ख़ुशी और ताज हो|ऐ प्यारो !ख़ुदावन्द में इसी तरह कायम रहो|

2मैं यहुदिया को भी नसीहत करता हूँ और सुनतुखे को भी कि वो ख़ुदावन्द में एक दिल रहे |

3और ऐ सच्चे हम-खिदमत,तुझ से भी दरख्वास्त करता हूँ कि तू उन 'औरतों की मदद कर,क्यूँकि उन्होने ख़ुशख़बरी फैलाने में ,क्लेमेंस और मेरे बाक़ी उन हम खिदमतों समेत मेहनत की,जिनके नाम किताब-ए-हायात में दर्ज हैं|

4ख़ुदावन्द में हर वक़्त ख़ुश रहो;मैं फिर कहता हूँ कि ख़ुश रहो|

5तुम्हारी नर्म मिज़ाजी सब आदमियों पर ज़ाहिर हो, ख़ुदावन्द क़रीब है|

6किसी बात की फ़िक्र न करो,बल्कि हर एक बात में तुम्हारी दरख्वास्तों दु'आ और मिन्नत के वसीले से शुक्रगुजारी के साथ ख़ुदा के सामने पेश की जाएँ|

7तो ख़ुदा का इत्मिनान जो समझ से बिल्कुल बाहर है,तो तुम्हारे दिलो और ख्यालों को मसीह ईसा 'में महफ़ूज़ रखेगा|

8गरज़ ऐ भाइयों! जितनी बाते सच हैं, और जितनी बाते शराफ़त की हैं, और जितनी बाते वाजिब हैं, और जितनी बाते पाक हैं,और जितनी बाते पसन्दीदा हैं,और जितनी बाते दिलकश हैं;गरज़ जो नेकी और ता 'रीफ़ की बाते हैं, उन पर गौर किया करो|

9जो बातें तुमने मुझ से सीखी, और हासिल की, और सुनीं, और मुझ में देखीं,उन पर अमल किया करो, तो ख़ुदा जो इत्मिनान का चश्मा है तुम्हारे साथ रहेगा|

10मैं ख़ुदावन्द में बहुत खुश हूँ कि अब इतनी मुद्दत के बा'द तुम्हारा ख्याल मेरे लिए सरसब्ज़ हुआ; बेशक तुम्हें पहले भी इसका ख्याल था,मगर मौका न मिला|

11ये नही कि मैं मोहताजी के लिहाज़ से कहता हूँ;क्यूँकि मैंने ये सीखा है कि जिस हालत में हूँ उसी पर राज़ी रहूँ

12मैं पस्त होना भी जनता हूँ और बढना भी जनता हूँ ;हर एक बात और हर एक हालतों में मैने सेर होना, भूखा रहना और बढना घटना सीखा है|

13जो मुझे ताकत बख्शता है,उसमे मैं सब कुछ कर सकता हूँ|

14तो भी तुम ने अच्छा किया जो मेरी मुसीबतों में शरीक हुए|

15और ऐ फिलिप्प्यों!तुम ख़ुद भी जानते हो कि खुशख़बरी के शुरू में,जब मैं मकदुनिया से रवाना हुआ तो तुम्हारे सिवा किसी कलिसिया ने लेने- देने में मेरी मदद न की|

16चुनाँचे थिस्स्लुनीके में भी मेरी एहतियाज रफ़ा' करने के लिए तुमने एक दफा'नहीं, बल्कि दो दफ़ा'कुछ भेजा था|

17ये नहीं कि मैं ईनाम चाहता हूँ बल्कि ऐसा फल चाहता हूँ जो तुम्हारे हिसाब से ज्यादा हो जाए

18मेरे पास सब कुछ है, बल्कि बहुतायत से है; तुम्हारी भेजी हुई चीज़ों इप्फ़्र्दितुस के हाथ से लेकर मैं आसूदा हो गया हूँ, वो ख़ुशबू और मकबूल कुर्बानी हैं जो ख़ुदा को पसन्दीदा है|

19मेरा ख़ुदा अपनी दौलत के मुवाफ़िक जलाल से मसीह ईसा 'में तुम्हारे हर एक कमी रफ़ा' करेगा|

20हमारे खुदा और बाप की हमेशा से हमशा तक बड़ाई होती रहे आमीन

21हर एक मुकद्दस से जो मसीह ईसा' में है सलाम कहो|जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हे सलाम कहते है |

22सब मुक़द्दस ख़ुसूसन, क़ैसर के घर वाले तुम्हे सलाम कहते हैं ||

23ख़ुदावन्द ईसा' मसीह का फ़ज़ल तुम्हारी रूह के साथ रहे|


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