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1इसी वजह से मैं पौलुस जो तुम गैर-कोम वालों की खातिर ईसा' मसीह का कैदी हूँ ।

2शायद तुम ने ख़ुदा के उस फ़ज़ल के इन्तज़ाम का हाल सुना होगा, जो तुम्हारे लिए मुझ पर हुआ।

3या'नी ये कि वो भेद मुझे मुकाशिफा से मा'लूम हुआ। चुनाँचे मैंने पहले उसका थोडा हाल लिखा है,

4जिसे पढ़कर तुम माँ'लूम कर सकते हो कि मैं मसीह का वो राज़ किस कदर समझता हूँ।

5जो और ज़मानों में बनी आदम को इस तरह मा'लूम न हुआ था, जिस तरह उसके मुकदस रसूलों और नबियों पर पाक रूह में अब ज़ाहिर हो गया है;

6या'नी ये कि ईसा' मसीह में गैर-कौम खुशखबरी के वसीले से मीरास में शरीक और बदन में शामिल और वा'दों में दाखिल हैं।

7और ख़ुदा के उस फज़ल की बख्शिश से जो उसकी कुदरत की तासीर से मुझ पर हुआ, मैं इस खुशखबरी का खादिम बना।

8मुझ पर जो सब मुकद्सों में छोटे से छोटा हूँ, फ़ज़ल हुआ कि गैर-कौमों को मसीह की बेकयास दौलत की खुशखबरी दूँ।

9और सब पर ये बात रोशन करूँ कि जो राज़ अज़ल से सब चीज़ों के पैदा करनेवाले ख़ुदा में छुपा रहा उसका क्या इन्तज़ाम है।

10ताकि अब कलीसिया के वसीले से ख़ुदा की तरह तरह की हिक्मत उन हुकूमतवालों और इख़्तियार वालों को जो आसमानी मकामों में हैं, मा'लूम हो जाए।

11उस अज़ली इरादे के मुताबिक जो उसने हमारे खुदावन्द ईसा' मसीह में किया था,

12जिसमें हम को उस पर ईमान रखने के वजह से दिलेरी है और भरोसे के साथ रसाई।

13पस मैं गुज़ारिश करता हूँ कि तुम मेरी उन मुसीबतों की वजह से जो तुम्हारी खातिर सहता हूँ हिम्मत न हारो, क्यूँकि वो तुम्हारे लिए 'इज्ज़त का जरिया हैं।

14इस वजह से मैं उस बाप के आगे घुटने टेकता हूँ,

15जिससे आसमान और ज़मीन का हर एक खानदान नामज़द है।

16कि वो अपने जलाल की दौलत के मुवाफिक तुम्हें ये 'इनायत करे कि तुम उस की रूह से अपनी बातिनी इन्सानियत में बहुत ही ताक़तवर हो जाओ,

17और ईमान के वसीले से मसीह तुम्हारे दिलों में सुकूनत करे ताकि तुम मुहब्बत में जड़ पकड़ के और बुनियाद कायम करके,

18सब मुकद्दसों समेत बखूबी मा'लूम कर सको कि उसकी चौड़ाई और लम्बाई और ऊँचाई और गहराई कितनी है,

19और मसीह की उस मुहब्बत को जान सको जो जानने से बाहर है ताकि तुम ख़ुदा की सारी माँ'मूरी तक मा'मूर हो जाओ।

20अब जो ऐसा कादिर है कि उस कुदरत के मुवाफ़िक़ जो हम में तासीर करती है, हामारी गुज़ारिश और खयाल से बहुत ज्यादा काम कर सकता है,।

21कलीसिया में और ईसा मसीह ' में पुश्त-दर-पुश्त और हमेशा ए हमेश उसकी बड़ाई होती रहे| आमीन।


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