1जब ख़ुदावन्द ने दाऊद को उसके सब दुश्मनों और साऊल के हाथ से रिहाई दी तो उसने ख़ुदावन्द के हुज़ूर इस मज़मून का गीत सुनाया |
2वह कहने लगा ,ख़ुदावन्द मेरी चट्टान और मेरा किला' और मेरा छुड़ाने वाला है ,
3ख़ुदा मेरी चट्टान है ,मैं उसी पर भरोसा रख्खूँगा ,वही मेरा सिपर और मेरी नजात का सींग है , मेरा ऊँचा बुर्ज और मेरी पनाह है ,मेरे नजात देने वाले ! तूही मुझे ज़ुल्म से बचाता है |
4मैं ख़ुदावन्द को जो सिताइश के लायक़ है पुकारूँगा ,यूँ मैं अपने दुश्मनों से बचाया जाऊँगा |
5क्यूँकि मौत की मौजों ने मुझे घेरा ,बेदीनी के सैलाबों ने मुझे डराया |
6पाताल की रस्सियाँ मेरे चौगिर्द थीं मौत के फंदे मुझ पर आपड़े थे |
7अपनी मुसीबत में मैंने ख़ुदावन्द को पुकारा ,मैं अपने ख़ुदा के हुज़ूर चिल्लाया |उसने अपनी हैकल में से मेरी आवाज़ सुनी और मेरी फ़रयाद उसके कान में पहुँची |
8तब ज़मीन हिल गई और काँप उठी और आसमान की बुनियादों ने जुम्बिश खाई और हिल गयीं ,इस लिए कि वह ग़ज़ब नाक हुआ |
9उसके नथुनों से धुवाँ उठा और उसके मुँह से आग निकल कर भस्म करने लगी ,कोयले उससे दहक उठे |
10उसने आसमानों को भी झुका दिया और नीचे उतर आया और उसके पाँव तले गहरी तारीकी थी |
11वह करूबी पर सवार होकर उदा और हवा के बाजुओं पर दिखाई दिया |
12और उसने अपने चौगिर्द तारीकी को और पानी के इज्तिमा'और आसमान के दलदार बादलों को शामियाने बनाया |
13उस झलक से जो उसके आगे आगे थी आग के कोयले सुलग गये |
14ख़ुदावन्द आसमान से गरजा और हक़ त'आला ने अपनी आवाज़ सुनाई |
15उसने तीर चला कर उनको परागन्दा किया ,और बिजली से उनको शिकस्त दी |
16तब ख़ुदावन्द की डॉट से ;उसके नथुनों के दम के झोंके से ,समुन्दर की थाह दिखाई देने लगी ,और जहान की बुनियादें नमूदार हुईं |
17उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया ,और मुझे बहुत पानी मेंसे खींच कर बाहर निकाला |
18उसने मेरे ज़ोर आवर दुश्मन और मेरे 'अदावत रखने वालों से ,मुझे छुड़ा लिया क्यूँकि वह मेरे लिए निहायत ज़बर दस्त थे |
19वह मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर आ पड़े ,पर ख़ुदावन्द मेरा सहारा था |
20वह मुझे कुशादा जगह में निकाल भी लाया ,उसने मुझे छुड़ाया ,इस लिए कि वह मुझसे ख़ुश था |
21ख़ुदावन्द ने मेरी रास्ती के मुवाफिक़ मुझे जज़ा दी ,और मेरे हाथों की पाकीज़गी के मुताबिक़ मुझे बदला दिया |
22क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द की राहों पर चलता रहा ,और शरारत से अपने ख़ुदा से अलग न हुआ |
23क्यूँकि उसके सारे फ़ैसले मेरे सामने थे ,और मैं उसके आईन से बरगश्ता न हुआ |
24मैं उसके हुज़ूर कामिल भी रहा ,और अपनी बदकारी से बाज़ रहा |
25इसी लिए ख़ुदावन्द ने मुझे मेरी रास्ती के मुवाफ़िक़ बल्कि मेरी उस पाकीज़गी के मुताबिक़ जो उसकी नज़र के सामने थी बदला दिया |
26रहम दिल के साथ तू रहीम होगा ,और कामिल आदमी के साथ कामिल |
27नेकोकार के साथ नेक होगा ,और कजरौ के साथ टेढ़ा |
28मुसीबत ज़दा लोगों को तू बचाएगा ,पर तेरी आँखें मग़रूरों पर लगी हैं ताकि तू उन्हें नीचा करे |
29क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द !तू मेरा चराग़ है ,और ख़ुदावन्द मेरे अँधेरे को उजाला कर देगा |
30क्यूँकि तेरी बदौलत मैं फ़ौज पर धावा करता हूँ ,और अपने ख़ुदा की बदौलत दीवार फाँद जाता हूँ |
31लेकिन ख़ुदा की राह कामिल है ,ख़ुदावन्द का कलाम ताया हुआ है ,वह उन सबकी सिपर है जो उसपर भरोसा रखते हैं |
32क्यूँकि ख़ुदावन्द के सिवा और कौन ख़ुदा है?और हमारे ख़ुदा को छोड़ कर और कौन चटटान है ?
33ख़ुदा मेरा मज़बूत किला' है ,वह अपनी राह में कामिल शख्स़ की रहनुमाई करता है |
34वह उसके पाँव हरनियों के से बना देता है ,और मुझे मेरी ऊँची जगहों में कायम करता है |
35वह मेरे हाथों को जंग करना सिखाता है ,यहाँ तक कि मेरे बाज़ू पीतल की कमान को झुका देते हैं |
36तूने मुझको अपनी नजात की सिपर भी बख्शी ,और तेरी नरमी ने मुझे बुज़ुर्ग बना दिया |
37तूने मेरे नीचे मेरे क़दम कुशादा कर दिए ,और मेरे पाँव नहीं फिसले |
38मैंने अपने दुश्मनों का पीछा करके उनको हलाक किया ,और जब तक वह फ़ना न हो गये मैं वापस नहीं आया |
39मैंने उनको फ़ना कर दिया और ऐसा छेद डाला है कि वह उठ नहीं सकते ,बल्कि वह तो मेरे पाँव के नीचे गिरे पड़े हैं |
40क्यूँकि तूने लड़ाई के लिए मुझे क़ूव्वत से कमर बस्ता किया ,और मेरे मुखालिफ़ों को मेरे सामने ज़ेर किया |
41तूने मेरे दुश्मनों की पुश्त मेरी तरफ़ फेरदी ,ताकि मैं अपने 'अदावत रखने वालों को काट डालूँ |
42उन्होंने इन्तिज़ार किया पर कोई न था जो बचाए ,बल्कि ख़ुदावन्द का भी इन्तिज़ार किया ,पर उसने उनको जवाब न दिया |
43तब मैंने उनको कूट कूट कर ज़मीन की गर्द के मानिन्द कर दिया ,मैंने उनको गली कूचों की कीचड़ की तरह रौंद रौंद कर चारो तरफ़ फैला दिया |
44तूने मुझे मेरी क़ौम के झगड़ों से भी छुड़ाया ,तूने मुझे क़ौमों का सरदार होने के लिए रख छोड़ा है ,जिस क़ौम से मैं वाक़िफ़ भी नहीं वह मेरी मुती' होगी |
45परदेसी मेरे ताबे' हो जायेंगे ,वह मेरा नाम सुनते ही मेरे फ़रमाबर्दारी करेंगे |
46परदेसी मुरझा जायेंगे और अपने किलों'से थरथराते हुए निकलेंगे |
47ख़ुदावन्द ज़िन्दा है ,मेरी चटटान मुबारक हो !और ख़ुदा मेरे नजात की चटटान मुमताज़ हो !
48वही ख़ुदा जो मेरा इन्तिक़ाम लेता है ,और उम्मतों को मेरे ताबे' करदेता है |
49और मुझे मेरे दुश्मनों के बीच से निकालता है ,हाँ तू मुझे मेरे मुखालिफ़ों पर सरफ़राज़ करता है ,तू मुझे तुन्दख़ू आदमी से रिहाई देता है |
50इस लिए ऐ ख़ुदावन्द !मैं क़ौमों के दरमियान तेरी शुक्र गुज़ारी और तेरे नाम की मदह सराई करूँगा |
51वह अपने बादशाह को बड़ी नजात 'इनायत करता है ,और अपने ममसूह दाऊद और उसकी नस्ल पर हमेशा शफ़क़त करता है |