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1फिर यहोशू ने इस्राएल के सब गोत्रों को शकेम में इकट्ठा किया, और इस्राएल के वृद्ध लोगों, और मुख्‍य पुरूषों, और न्‍यायियों, और सरदारों को बुलवाया; और वे परमेश्‍वर के साम्‍हने उपस्थित हुए।

2तब यहोशू ने उन सब लोगों से कहा, इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि प्राचीन काल में इब्राहीम और नाहोर का पिता तेरह आदि, तुम्‍हारे पुरखा परात महानद के उस पार रहते हुए दूसरे देवताओं की उपासना करते थे।

3और मैं ने तुम्‍हारे मूलपुरूष इब्राहीम को महानद के उस पार से ले आकर कनान देश के सब स्‍थानों में फिराया, और उसका वंश बढ़ाया। और उसे इसहाक को दिया;

4फिर मैं ने इसहाक को याकूब और एसाव दिया। और एसाव को मैं ने सेईर नाम पहाड़ी देश दिया कि वह उसका अधिकारी हो, परन्‍तु याकूब बेटों-पोतों समेत मिस्र को गया।

5फिर मैं ने मूसा और हारून को भेजकर उन सब कामों के द्वारा जो मैं ने मिस्र में किए उस देश को मारा; और उसके बाद तुम को निकाल लाया।

6और मैं तुम्‍हारे पुरखाओं को मिस्र में से निकाल लाया, और तुम समुद्र के पास पहुंचे; और मिस्रियों ने रथ और सवारों को संग लेकर लाल समुद्र तक तुम्‍हारा पीछा किया।

7और जब तुम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने तुम्‍हारे और मिस्रियों के बीच में अन्‍धियारा कर दिया, और उन पर समुद्र को बहाकर उनको डुबा दिया; और जो कुछ मैं ने मिस्र में किया उसे तुम लोगों ने अपनी आंखों से देखा; फिर तुम बहुत दिन तक जंगल में रहे।

8तब मैं तुम को उन एमोरियों के देश में ले आया, जो यरदन के उस पार बसे थे; और वे तुम से लड़े और मैं ने उन्‍हें तुम्‍हारे वश में कर दिया, और तुम उनके देश के अधिकारी हो गए, और मैं ने उनको तुम्‍हारे साम्‍हने से सत्‍यानाश कर डाला।

9फिर मोआब के राजा सिप्‍पोर का पुत्र बालाक उठकर इस्राएल से लड़ा; और तुम्‍हें शाप देने के लिये बोर के पुत्र बिलाम को बुलवा भेजा,

10परन्‍तु मैं ने बिलाम की सुनने के लिये नाहीं की; वह तुम को आशीष ही आशीष देता गया; इस प्रकार मैं ने तुम को उसके हाथ से बचाया।

11तब तुम यरदन पार होकर यरीहो के पास आए, और जब यरीहो के लोग, और एमोरी, परिज्‍जी, कनानी, हित्ती, गिर्गाशी, हिब्‍बी, और यबूसी तुम से लड़े, तब मैं ने उन्‍हें तुम्‍हारे वश में कर दिया।

12और मैं ने तुम्‍हारे आगे बर्रों को भेजा, और उन्होंने एमोरियों के दोनों राजाओं को तुम्‍हारे साम्‍हने से भगा दिया; देखो, यह तुम्‍हारी तलवार वा धनुष का काम नहीं हुआ।

13फिर मैं ने तुम्‍हें ऐसा देश दिया जिस में तुम ने परिश्रम न किया था, और ऐसे नगर भी दिए हैं जिन्‍हें तुम ने न बसाया था, और तुम उन में बसे हो; और जिन दाख और जलपाई के बगीचों के फल तुम खाते हो उन्‍हें तुम ने नहीं लगाया था।

14इसलिये अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्‍चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्‍हारे पुरखा महानद के उस पार और मिस्र में करते थे, उन्‍हें दूर करके यहोवा की सेवा करो।

15और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्‍हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्‍हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्‍तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूँगा।

16तब लोगों ने उत्तर दिया, यहोवा को त्‍यागकर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे;

17क्‍योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा वही है जो हम को और हमारे पुरखाओं को दासत्‍व के घर, अर्थात् मिस्र देश से निकाल ले आया, और हमारे देखते बड़े बड़े आश्‍चर्यकर्म किए, और जिस मार्ग पर और जितनी जातियों के मध्‍य में से हम चले आते थे उन में हमारी रक्षा की;

18और हमारे साम्‍हने से इस देश में रहनेवाली एमोरी आदि सब जातियों को निकाल दिया है; इसलिये हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्‍योंकि हमारा परमेश्‍वर वही है।(प्रेरि. 7:45)

19यहोशू ने लोगों से कहा, तुम से यहोवा की सेवा नहीं हो सकती; क्‍योंकि वह पवित्र परमेश्‍वर है; वह जलन रखनेवाला ईश्‍वर है; वह तुम्‍हारे अपराध और पाप क्षमा न करेगा।

20यदि तुम यहोवा को त्‍यागकर पराए देवताओं की सेवा करने लगोगे, तो यद्दपि वह तुम्‍हारा भला करता आया है तौभी वह फिरकर तुम्‍हारी हानि करेगा और तुम्‍हारा अन्‍त भी कर डालेगा।

21लोगों ने यहोशू से कहा, नहीं; हम यहोवा ही की सेवा करेंगे।

22यहोशू ने लोगों से कहा, तुम आप ही अपने साक्षी हो कि तुम ने यहोवा की सेवा करनी अंगीकार कर ली है। उन्होंने कहा, हां, हम साक्षी हैं।

23यहोशू ने कहा, अपने बीच में से पराए देवताओं को दूर करके अपना अपना मन इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा की ओर लगाओ।

24लोगों ने यहोशू से कहा, हम तो अपने परमेश्‍वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे।

25तब यहोशू ने उसी दिन उन लोगों से वाचा बन्‍धाई, और शकेम में उनके लिये विधि और नियम ठहराया।।

26यह सारा वृत्तान्‍त यहोशू ने परमेश्‍वर की व्‍यवस्‍था की पुस्‍तक में लिख दिया; और एक बड़ा पत्‍थर चुनकर वहाँ उस बांजवृक्ष के तले खड़ा किया, जो यहोवा के पवित्र स्‍थान में था।

27तब यहोशू ने सब लोगों से कहा, सुनो, यह पत्‍थर हम लोगों का साक्षी रहेगा, क्‍योंकि जितने वचन यहोवा ने हम से कहें हैं उन्‍हें इस ने सुना है; इसलिये यह तुम्‍हारा साक्षी रहेगा, ऐसा न हो कि तुम अपने परमेश्‍वर से मुकर जाओ।

28तब यहोशू ने लोगों को अपने अपने निज भाग पर जाने के लिये विदा किया।।

29इन बातों के बाद यहोवा का दास, नून का पुत्र यहोशू, एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया।

30और उसको तिम्‍नत्‍सेरह में, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई।

31और यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और जानते थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे काम किए थे, उनके भी जीवन भर इस्राएली यहोवा ही की सेवा करते रहे।

32फिर यूसुफ की हड्डियां जिन्‍हें इस्राएली मिस्र से ले आए थे वे शकेम की भूमि के उस भाग में गाड़ी गईं, जिसे याकूब ने शकेम के पिता हामोर से एक सौ चाँदी के सिक्‍कों में मोल लिया था; इसलिये वह यूसुफ की सन्‍तान का निज भाग हो गया।(यूह. 4:5, प्रेरि 7:16)

33और हारून का पुत्र एलीआज़र भी मर गया; और उसको एप्रैम के पहाड़ी देश में उस पहाड़ी पर मिट्टी दी गई, जो उसके पुत्र पीनहास के नाम पर गिबत्‍पीनहास कहलाती है और उसको दे दी गई थी।।


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