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1फिर यूसुफ के जेठे मनश्‍शे के गोत्र का भाग चिट्ठी डालने से यह ठहरा। मनश्‍शे का जेठा पुत्र गिलाद का पिता माकीर योद्धा था, इस कारण उसके वंश को गिलाद और बाशान मिला।

2इसलिये यह भाग दूसरे मनश्‍शेइयो के लिये उनके कुलों के अनुसार ठहरा, अर्थात् अबीएजेर, हेलेक, अस्त्रीएल, शेकेम, हेपेर, और शमीदा; जो अपने अपने कुलों के अनुसार यूसुफ के पुत्र मनश्‍शे के वंश में के पुरूष थे, उनके अलग अलग वंशों के लिये ठहरा।

3परन्‍तु हेपेर जो गिलाद का पुत्र, माकीर का पोता, और मनश्‍शे का परपोता था, उसके पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, बेटियां ही हुईं; और उनके नाम महला, नोआ, होग्‍ला, मिलका, और तिर्सा हैं।

4तब वे एलीआज़र याजक, नून के पुत्र यहोशू, और प्रधानों के पास जाकर कहने लगीं, यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी, कि वह हम को हमारे भाइयों के बीच भाग दे। तो यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन्‍हें उनके चाचाओं के बीच भाग दिया।

5तब मनश्‍शे को, यरदन पार गिलाद देश और बाशान को छोड़, दस भाग मिले;

6क्‍योंकि मनश्‍शेइयों के बीच में मनश्‍शेई स्‍त्रियों को भी भाग मिला। और दूसरे मनश्‍शेइयों को गिलाद देश मिला।

7और मनश्‍शे का सिवाना आशेर से लेकर मिकमतात तक पहुँचा, जो शकेम के साम्‍हने है; फिर वह दिक्‍खन की ओर बढ़कर एनतप्‍पूह के निवासियों तक पहुँचा।

8तप्‍पूह की भूमि तो मनश्‍शे को मिली, परन्‍तु तप्‍पूह नगर जो मनश्‍शे के सिवाने पर बसा है वह एप्रैमियों का ठहरा।

9फिर वहाँ से वह सिवाना काना के नाले तक उतरके उसके दिक्‍खन की ओर तक पहुँच गया; ये नगर यद्दपि मनश्‍शे के नगरों के बीच में थे तौभी एप्रैम के ठहरे; और मनश्‍शे का सिवाना उस नाले के उत्तर की ओर से जाकर समुद्र पर निकला;

10दिक्‍खन की ओर का देश तो एप्रैम को और उत्तर की ओर का मनश्‍शे को मिला, और उसका सिवाना समुद्र ठहरा; और वे उत्तर की ओर आशेर से और पूर्व की ओर इस्‍साकर से जा मिले।

11और मनश्‍शे को, इस्‍साकार और आशेर अपने अपने नगरों समेत बेतशान, यिबलाम, और अपने नगरों समेत दोर के निवासी, और अपने नगरों समेत एनदोर के निवासी, और अपने नगरों समेत तानाक की निवासी, और अपने नगरों समेत मगिद्दो के निवासी, ये तीनों जो ऊंचे स्‍थानों पर बसे हैं मिले।

12परन्‍तु मनश्‍शेई उन नगरों के निवासियों को उन में से नहीं निकाल सके; इसलिये वे कनानी उस देश में बरियाई से बसे ही रहे।

13तौभी जब इस्राएली सामर्थी हो गए, तब कनानियों से बेगारी तो कराने लगे, परन्‍तु उनको पूरी रीति से निकाल बाहर न किया।।

14यूसुफ की सन्‍तान यहोशू से कहने लगी, हम तो गिनती में बहुत हैं, क्‍योंकि अब तक यहोवा हमें आशीष ही देता आया है, फिर तू ने हमारे भाग के लिये चिट्ठी डालकर क्‍यों एक ही अंश दिया है?

15यहोशू ने उन से कहा, यदि तुम गिनती में बहुत हो, और एप्रैम का पहाड़ी देश तुम्‍हारे लिये छोटा हो, तो परिज्‍जयों और रपाइयों का देश जो जंगल है उसमें जाकर पेड़ों को काट डालो।

16यूसुफ की सन्‍तान ने कहा, वह पहाड़ी देश हमारे लिये छोटा है; और क्‍या बेतशान और उसके नगरों में रहनेवाले, क्‍या यिज्रेल की तराई में रहेनवाले, जितने कनानी नीचे के देश में रहते हैं, उन सभों के पास लोहे के रथ हैं।

17फिर यहोशू ने, क्‍या एप्रैमी क्‍या मनश्‍शेई, अर्थात् यूसुफ के सारे घराने से कहा, हां तुम लोग तो गिनती में बहुत हो, और तुम्‍हारी बड़ी सामथ्‍र्य भी है, इसलिये तुम को केवल एक ही भाग न मिलेगा;

18पहाड़ी देश भी तुम्‍हारा हो जाएगा; क्‍योंकि वह जंगल तो है, परन्‍तु उसके पेड़ काट डालो, तब उसके आस पास का देश भी तुम्‍हारा हो जाएगा; क्‍योंकि चाहे कनानी सामर्थी हों, और उनके पास लोहे के रथ भी हों, तौभी तुम उन्‍हें वहाँ से निकाल सकोगे।।


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