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1“यहोवा की यह वाणी है, उस समय यहूदा के राजाओं, हाकिमों, याजकों, भविष्‍यद्वक्‍ताओं और यरूशलेम के रहनेवालों की हड्डियाँ क़ब्रों में से निकालकर,

2सूर्य, चन्‍द्रमा और आकाश के सारे गणों के सामने फैलाई जाएँगी; क्‍योंकि वे उन्‍हीं से प्रेम रखते, उन्‍हीं की सेवा करते, उन्‍हीं के पीछे चलते, और उन्‍हीं के पास जाया करते और उन्‍हीं को दण्‍डवत् करते थे; और न वे इकट्ठी की जाएँगी न क़ब्र में रखी जाएँगी; वे भूमि के ऊपर खाद के समान पड़ी रहेंगी।

3तब इस बुरे कुल के बचे हुए लोग उन सब स्‍थानों में जिसमें मैंने उन्‍हें निकाल दिया है, जीवन से मृत्‍यु ही को अधिक चाहेंगे, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।(प्रका. 9:6)

4“तू उनसे यह भी कह, यहोवा यों कहता है कि जब मनुष्‍य गिरते हैं तो क्‍या फिर नहीं उठते?

5जब कोई भटक जाता है तो क्‍या वह लौट नहीं आता? फिर क्‍या कारण है कि ये यरूशलेमी सदा दूर ही दूर भटकते जाते हैं? ये छल नहीं छोड़ते, और फिर लौटने से इनकार करते हैं।

6मैंने ध्‍यान देकर सुना, परन्‍तु ये ठीक नहीं बोलते; इनमें से किसी ने अपनी बुराई से पछताकर नहीं कहा, ‘हाय ! मैंने यह क्‍या किया है?’ जैसा घोड़ा लड़ाई में वेग से दौड़ता है, वैसे ही इनमें से हर एक जन अपनी ही दौड़ में दौड़ता है।

7आकाश में लगलग भी अपने नियत समयों को जानता है, और पण्डुकी, सूपाबेनी, और सारस भी अपने आने का समय रखते हैं; परन्‍तु मेरी प्रजा यहोवा का नियम नहीं जानती।

8“तुम क्‍योंकर कह सकते हो कि हम बुद्धिमान हैं, और यहोवा की दी हुई व्‍यवस्‍था हमारे साथ है? परन्‍तु उनके शास्‍त्रियों ने उसका झूठा विवरण लिखकर उसको झूठ बना दिया है।

9बुद्धिमान लज्‍जित हो गए, वे विस्‍मित हुए और पकड़े गए; देखो, उन्होंने यहोवा के वचन को निकम्‍मा जाना है, उनमें बुद्धि कहाँ रही?

10इस कारण मैं उनकी स्‍त्रियों को दूसरे पुरुषों के और उनके खेत दूसरे अधिकारियों के वश में कर दूँगा, क्‍योंकि छोटे से लेकर बड़े तक वे सब के सब लालची हैं; क्‍या भविष्‍यद्वक्‍ता क्‍या याजक, वे सब छल से काम करते हैं।

11उन्होंने, ‘शान्‍ति है, शान्‍ति’ ऐसा कह कहकर मेरी प्रजा के घाव को ऊपर ही ऊपर चंगा किया, परन्‍तु शान्‍ति कुछ भी नहीं है।(1 थिस्सलु. 5:3, यहेज 13:10)

12क्या वे घृणित काम करके लज्‍जित हुए? नहीं, वे कुछ भी लज्‍जित नहीं हुए, वे लज्‍जित होना जानते ही नहीं। इस कारण जब और लोग नीचे गिरें, तब वे भी गिरेंगे; जब उनके दण्‍ड का समय आएगा, तब वे भी ठोकर खाकर गिरेंगे, यहोवा का यही वचन है।

13यहोवा की यह भी वाणी है, मैं उन सभों का अन्‍त कर दूँगा। न तो उनकी दाखलताओं में दाख पाई जाएँगी, और न अंजीर के वृक्ष में अंजीर वरन् उनके पत्‍ते भी सूख जाएँगे, और जो कुछ मैंने उन्‍हें दिया है वह उनके पास से जाता रहेगा।”

14हम क्‍यों चुप-चाप बैठे हैं? आओ, हम चलकर गढ़वाले नगरों में इकट्ठे नाश हो जाएँ; क्‍योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमको नाश करना चाहता है, और हमें विष पीने को दिया है; क्‍योंकि हमने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।

15हम शान्‍ति की बाट जोहते थे, परन्‍तु कुछ कल्‍याण नहीं मिला, और चंगाई की आशा करते थे, परन्‍तु घबराना ही पड़ा है।

16“उनके घोड़ों का फुर्राना दान से सुन पड़ता है, और बलवन्‍त घोड़ों के हिनहिनाने के शब्‍द से सारा देश काँप उठा है। उन्होंने आकर हमारे देश को और जो कुछ उसमें है, और हमारे नगर को निवासियों समेत नाश किया है।

17क्‍योंकि देखो, मैं तुम्‍हारे बीच में ऐसे साँप और नाग भेजूँगा जिन पर मंत्र न चलेगा, और वे तुमको डसेंगे,” यहोवा की यही वाणी है।

18हाय ! हाय ! इस शोक की दशा में मुझे शान्‍ति कहाँ से मिलेगी? मेरा हृदय भीतर ही भीतर तड़पता है !

19मुझे अपने लोगों की चिल्‍लाहट दूर के देश से सुनाई देती है: “क्‍या यहोवा सिय्‍योन में नहीं हैं? क्‍या उसका राजा उसमें नहीं?” “उन्होंने क्‍यों मुझको अपनी खोदी हुई मूरतों और परदेश की व्‍यर्थ वस्‍तुओं के द्वारा क्‍यों क्रोध दिलाया है?”

20“कटनी का समय बीत गया, फल तोड़ने की ॠतु भी समाप्‍त हो गई, और हमारा उद्धार नहीं हुआ।”

21अपने लोगों के दु:ख से मैं भी दु:खित हुआ, मैं शोक का पहरावा पहने अति अचम्‍भे में डूबा हूँ।

22क्‍या गिलाद देश में कुछ बलसान की औषधि नहीं? क्‍या उसमें कोई वैद्य नहीं? यदि है, तो मेरे लोगों के घाव क्‍यों चंगे नहीं हुए?


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