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1जो वचन यहोवा की ओर से यिर्मयाह के पास पहुँचा वह यह है:

2“यहोवा के भवन के फाटक में खड़ा हो, और यह वचन प्रचार कर, और कह, हे सब यहूदियो, तुम जो यहोवा को दण्‍डवत् करने के लिये इन फाटकों से प्रवेश करते हो, यहोवा का वचन सुनो।

3सेनाओं का यहोवा जो इस्राएल का परमेश्‍वर है, यों कहता है, अपनी-अपनी चाल और काम सुधारो, तब मैं तुमको इस स्‍थान में बसे रहने दूँगा।

4तुम लोग यह कहकर झूठी बातों पर भरोसा मत रखो, ‘यही यहोवा का मन्‍दिर है; यही यहोवा का मन्‍दिर, यहोवा का मन्‍दिर।’

5“यदि तुम सचमुच अपनी-अपनी चाल और काम सुधारो, और सचमुच मनुष्‍य-मनुष्‍य के बीच न्‍याय करो,

6परदेशी और अनाथ और विधवा पर अन्‍धेर न करो; इस स्‍थान में निर्दोष की हत्‍या न करो, और दूसरे देवताओं के पीछे न चलो जिससे तुम्‍हारी हानि होती है,

7तो मैं तुमको इस नगर में, और इस देश में जो मैंने तुम्‍हारे पूर्वजों को दिया था, युग-युग के लिये रहने दूँगा।

8“देखो, तुम झूठी बातों पर भरोसा रखते हो जिनसे कुछ लाभ नहीं हो सकता।

9तुम जो चोरी, हत्‍या और व्‍यभिचार करते, झूठी शपथ खाते, बाल देवता के लिये धूप जलाते, और दूसरे देवताओं के पीछे जिन्‍हें तुम पहले नहीं जानते थे चलते हो,

10तो क्‍या यह उचित है कि तुम इस भवन में आओ जो मेरा कहलाता है, और मेरे सामने खड़े होकर यह कहो कि हम इसलिये छूट गए हैं कि ये सब घृणित काम करें?

11क्‍या यह भवन जो मेरा कहलाता है, तुम्‍हारी दृष्‍टि में डाकुओं की गुफ़ा हो गया है? मैंने स्‍वयं यह देखा है, यहोवा की यह वाणी है।(मत्ती. 21:13, मर 11:17, लूका 19:46)

12मेरा जो स्‍थान शीलो में था, जहाँ मैंने पहले अपने नाम का निवास ठहराया था, वहाँ जाकर देखो कि मैंने अपनी प्रजा इस्राएल की बुराई के कारण उसकी क्‍या दशा कर दी है?

13अब यहोवा की यह वाणी है, कि तुम जो ये सब काम करते आए हो, और यद्यपि मैं तुमसे बड़े यत्‍न से बातें करता रहा हूँ, तौभी तुमने नहीं सुना, और तुम्‍हें बुलाता आया परन्‍तु तुम नहीं बोले,

14इसलिये यह भवन जो मेरा कहलाता है, जिस पर तुम भरोसा रखते हो, और यह स्‍थान जो मैंने तुमको और तुम्‍हारे पूर्वजों को दिया था, इसकी दशा मैं शीलो की सी कर दूँगा।

15और जैसा मैंने तुम्‍हारे सब भाइयों को अर्थात सारे एप्रैमियों को अपने सामने से दूर कर दिया है, वैसा ही तुमको भी दूर कर दूँगा।

16“इस प्रजा के लिये तू प्रार्थना मत कर, न इन लोगों के लिये ऊँचे स्‍वर से पुकार न मुझसे विनती कर, क्‍योंकि मैं तेरी नहीं सुनूँगा।

17क्‍या तू नहीं देखता कि ये लोग यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों में क्‍या कर रहे हैं?

18देख, लड़के बाले तो ईधन बटोरते, बाप आग सुलगाते और स्‍त्रियाँ आटा गूँधती हैं, कि स्‍वर्ग की रानी के लिये रोटियाँ चढ़ाएं; और मुझे क्रोधित करने के लिये दूसरे देवताओं के लिये तपावन दें।

19यहोवा की यह वाणी है, क्‍या वे मुझी को क्रोध दिलाते हैं? क्‍या वे अपने ही को नहीं जिससे उनके मुँह पर सियाही छाए?

20अतः प्रभु यहोवा ने यों कहा है, क्‍या मनुष्‍य, क्‍या पशु, क्‍या मैदान के वृक्ष, क्‍या भूमि की उपज, उन सब पर जो इस स्‍थान में हैं, मेरे कोप की आग भड़कने पर है; वह नित्‍य जलती रहेगी और कभी न बुझेगी।”

21सेनाओं का यहोवा जो इस्राएल का परमेश्‍वर है, यों कहता है, “अपने मेलबलियों के साथ अपने होमबलि भी चढ़ाओ और मांस खाओ।

22क्‍योंकि जिस समय मैंने तुम्‍हारे पूर्वजों को मिस्र देश में से निकाला, उस समय मैंने उन्‍हें होमबलि और मेलबलि के विषय कुछ आज्ञा न दी थी।

23परन्‍तु मैंने तो उनको यह आज्ञा दी कि मेरे वचन को मानो, तब मैं तुम्‍हारा परमेश्‍वर हूँगा, और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे; और जिस मार्ग की मैं तुम्‍हें आज्ञा दूँ उसी में चलो, तब तुम्‍हारा भला होगा।

24पर उन्होंने मेरी न सुनी और न मेरी बातों पर कान लगाया; वे अपनी ही युक्तियों और अपने बुरे मन के हठ पर चलते रहे और पीछे हट गए पर आगे न बढ़े।

25जिस दिन तुम्‍हारे पुरखा मिस्र देश से निकले, उस दिन से आज तक मैं तो अपने सारे दासों, भविष्‍यद्वक्‍ताओं को, तुम्‍हारे पास बड़े यत्‍न से लगातार भेजता रहा;

26परन्‍तु उन्होंने मेरी नहीं सुनी, न अपना कान लगाया; उन्होंने हठ किया, और अपने पुरखाओं से बढ़कर बुराईयाँ की हैं।

27“तू सब बातें उनसे कहेगा पर वे तेरी न सुनेंगे; तू उनको बुलाएगा, पर वे न बोलेंगे।

28तब तू उनसे कह देना, ‘यह वही जाति है जो अपने परमेश्‍वर यहोवा की नहीं सुनती, और ताड़ना से भी नहीं मानती; सच्‍चाई नाश हो गई, और उनके मुँह से दूर हो गई है।

29“अपने बाल मुंडाकर फेंक दे; मुण्‍डे टीलों पर चढ़कर विलाप का गीत गा, क्‍योंकि यहोवा ने इस समय के निवासियों पर क्रोध किया और उन्‍हें निकम्‍मा जानकर त्‍याग दिया है।’

30“यहोवा की यह वाणी है, इसका कारण यह है कि यहूदियों ने वह काम किया है, जो मेरी दृष्‍टि में बुरा है; उन्होंने उस भवन में जो मेरा कहलाता है, अपनी घृणित वस्‍तुएँ रखकर उसे अशुद्ध कर दिया है।

31और उन्होंने हिन्नोमवंशियों की तराई में तोपेत नामक ऊँचे स्‍थान बनाकर, अपने बेटे-बेटियों को आग में जलाया है; जिसकी आज्ञा मैंने कभी नहीं दी और न मेरे मन में वह कभी आया।

32यहोवा की यह वाणी है, इसलिये ऐसे दिन आते हैं कि वह तराई फिर न तो तोपेत की और न हिन्नोमवंशियों की कहलाएगी, वरन् घात की तराई कहलाएगी; और तोपेत में इतनी कब्रें होंगी कि और स्‍थान न रहेगा।

33इसलिये इन लोगों की लोथें आकाश के पक्षियों और पृथ्‍वी के पशुओं का आहार होंगी, और उनको भगानेवाला कोई न रहेगा।

34उस समय मैं ऐसा करूँगा कि यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों में न तो हर्ष और आनन्‍द का शब्‍द सुन पड़ेगा, और न दुल्‍हे और न दुल्‍हिन का; क्‍योंकि देश उजाड़ ही उजाड़ हो जाएगा।(प्रका. 18:23)


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