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1यरूशलेम की सड़कों में इधर-उधर दौड़कर देखो ! उसके चौकों में ढूँढ़ो यदि कोई ऐसा मिल सके जो न्‍याय से काम करे और सच्‍चाई का खोजी हो; तो मैं उसका पाप क्षमा करूँगा।

2यद्यपि उसके निवासी यहोवा के जीवन की शपथ भी खाएँ, तौभी निश्‍चय वे झूठी शपथ खाते हैं।

3हे यहोवा, क्‍या तेरी दृष्‍टि सच्‍चाई पर नहीं है? तूने उनको दु:ख दिया, परन्‍तु वे शोकित नहीं हुए; तूने उनको नाश किया, परन्‍तु उन्होंने ताड़ना से भी नहीं माना। उन्होंने अपना मन चट्टान से भी अधिक कठोर किया है; उन्होंने पश्‍चाताप करने से इनकार किया है।

4फिर मैंने सोचा, “ये लोग तो कंगाल और अबोध ही हैं; क्‍योंकि ये यहोवा का मार्ग और अपने परमेश्‍वर का नियम नहीं जानते।

5इसलिये मैं बड़े लोगों के पास जाकर उनको सुनाऊँगा; क्‍योंकि वे तो यहोवा का मार्ग और अपने परमेश्‍वर का नियम जानते हैं।” परन्‍तु उन सभों ने मिलकर जूए को तोड़ दिया है और बन्‍धनों को खोल डाला है।

6इस कारण वन में से एक सिंह आकर उन्‍हें मार डालेगा, निर्जल देश का एक भेड़िया उनको नाश करेगा। और एक चीता उनके नगरों के पास घात लगाए रहेगा, और जो कोई उनमें से निकले वह फाड़ा जाएगा; क्‍योंकि उनके अपराध बहुत बढ़ गए हैं और वे मुझसे बहुत ही दूर हट गए हैं।

7“मैं क्‍योंकर तेरा पाप क्षमा करूँ? तेरे लड़कों ने मुझको छोड़कर उनकी शपथ खाई है जो परमेश्‍वर नहीं है। जब मैंने उनका पेट भर दिया, तब उन्होंने व्‍यभिचार किया और वेश्‍याओं के घरों में भीड़ की भीड़ जाते थे।

8वे खिलाए-पिलाए बे-लगाम घोड़ों के समान हो गए, वे अपने-अपने पड़ोसी की स्‍त्री पर हिनहिनाने लगे।

9क्‍या मैं ऐसे कामों का उन्‍हें दण्‍ड न दूँ? यहोवा की यह वाणी है; क्‍या मैं ऐसी जाति से अपना पलटा न लूँ?

10“शहरपनाह पर चढ़कर उसका नाश तो करो, तौभी उसका अन्‍त मत कर डालो; उसकी जड़ रहने दो परन्‍तु उसकी डालियों को तोड़कर फेंक दो, क्‍योंकि वे यहोवा की नहीं हैं।

11यहोवा की यह वाणी है कि इस्राएल और यहूदा के घरानों ने मुझसे बड़ा विश्‍वासघात किया है।

12“उन्होंने यहोवा की बातें झुठलाकर कहा, ‘वह ऐसा नहीं है; विपत्‍ति हम पर न पड़ेगी, न हम तलवार को और न महँगी को देखेंगे।

13भविष्‍यद्वक्‍ता हवा हो जाएँगे; उनमें ईश्‍वर का वचन नहीं है। उनके साथ ऐसा ही किया जाएगा’!”

14इस कारण सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है: “ये लोग जो ऐसा कहते हैं, इसलिये देख, मैं अपना वचन तेरे मुँह में आग, और इस प्रजा को काठ बनाऊँगा, और वह उनको भस्‍म करेगी।(प्रका. 11:5)

15यहोवा की यह वाणी है, हे इस्राएल के घराने, देख, मैं तुम्‍हारे विरुद्ध दूर से ऐसी जाति को चढ़ा लाऊँगा जो सामर्थी और प्राचीन है, उसकी भाषा तुम न समझोगे, और न यह जानोगे कि वे लोग क्‍या कह रहे हैं।

16उनका तर्कश खुली क़ब्र है और वे सब के सब शूरवीर हैं।

17तुम्‍हारे पक्‍के खेत और भोजनवस्‍तुएँ जो तुम्‍हारे बेटे-बेटियों के खाने के लिये हैं उन्‍हें वे खा जाएँगे। वे तुम्‍हारी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को खा डालेंगे; वे तुम्‍हारी दाखों और अंजीरों को खा डालेगें वे तुम्‍हारी दाखों और अंजीरों को खा जाएँगे; और जिन गढ़वाले नगरों पर तुम भरोसा रखते हो उन्‍हें वे तलवार के बल से नाश कर देंगे।”

18“तौभी, यहोवा की यह वाणी है, उन दिनों में भी मैं तुम्‍हारा अन्‍त न कर डालूँगा।

19जब तुम पूछोगे, ‘हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमसे ये सब काम किस लिये किए हैं,’ तब तुम उनसे कहना, ‘जिस प्रकार से तुमने मुझको त्‍यागकर अपने देश में दूसरे देवताओं की सेवा की है, उसी प्रकार से तुमको पराये देश में परदेशियों की सेवा करनी पड़ेगी’।”

20याकूब के घराने में यह प्रचार करो, और यहूदा में यह सुनाओः

21“हे मूर्ख और निर्बुद्धि लोगो, तुम जो आँखें रहते हुए नहीं देखते, जो कान रहते हुए नहीं सुनते, यह सुनो।(मर 8:18)

22यहोवा की यह वाणी है, क्‍या तुम लोग मेरा भय नहीं मानते? क्‍या तुम मेरे सम्‍मुख नहीं थरथराते? मैंने बालू को समुद्र की सीमा ठहराकर युग-युग का ऐसा बाँध ठहराया कि वह उसे पार न कर सके; और चाहे उसकी लहरें भी उठें, तौभी वे प्रबल न हो सकें, या जब वे गरजें तौभी उसको न पार कर सकें।

23पर इस प्रजा का हठीला और बलवा करनेवाला मन है; इन्होंने बलवा किया और दूर हो गए हैं।

24वे मन में इतना भी नहीं सोचते कि हमारा परमेश्‍वर यहोवा तो बरसात के आरम्‍भ और अन्‍त दोनों समयों का जल समय पर बरसाता है, और कटनी के नियत सप्‍ताहों को हमारे लिये रखता है, इसलिये हम उसका भय मानें।(प्रेरि. 14:17, याकू. 5:7)

25परन्‍तु तुम्‍हारे अधर्म के कामों ही के कारण वे रुक गए, और तुम्‍हारे पापों ही के कारण तुम्‍हारी भलाई नहीं होती।

26मेरी प्रजा में दुष्‍ट लोग पाए जाते हैं; जैसे चिड़ीमार ताक में रहते हैं, वैसे ही वे भी घात लगाए रहते हैं। वे फन्‍दा लगाकर मनुष्‍यों को अपने वश में कर लेते हैं।

27जैसा पिंजड़ा चिड़ियों से भरा हो, वैसे ही उनके घर छल से भरे रहते हैं; इसी प्रकार वे बढ़ गए और धनी हो गए हैं।

28वे मोटे और चिकने हो गए हैं। बुरे कामों में वे सीमा को पार कर गए हैं; वे न्‍याय, विशेष करके अनाथों का न्‍याय नहीं चुकाते; इससे उनका काम सफल नहीं होताः वे कंगालों का हक़ भी नहीं दिलाते।

29इसलिये, यहोवा की यह वाणी है, क्‍या मैं इन बातों का दण्‍ड न दूँ? क्‍या मैं ऐसी जाति से पलटा न लूँ?”

30देश में ऐसा काम होता है जिससे चकित और रोमांचित होना चाहिये।

31भविष्‍यद्वक्‍ता झूठमूठ भविष्‍यद्वाणी करते हैं; और याजक उनके सहारे से प्रभुता करते हैं; मेरी प्रजा को यह भाता भी है, परन्‍तु अन्‍त के समय तुम क्‍या करोगे?


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