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1यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुँचा,

2“जा और यरूशलेम में पुकारकर यह सुना दे, यहोवा यह कहता है, तेरी जवानी का स्‍नेह और तेरे विवाह के समय का प्रेम मुझे स्‍मरण आता है कि तू कैसे जंगल में मेरे पीछे-पीछे चली जहाँ भूमि जोती-बोई न गई थी।

3इस्राएल, यहोवा के लिये पवित्र और उसकी पहली उपज थी। उसे खानेवाले सब दोषी ठहरेंगे और विपत्‍ति में पड़ेंगे,” यहोवा की यही वाणी है।

4हे याकूब के घराने, हे इस्राएल के घराने के कुलों के लोगों, यहोवा का वचन सुनो !

5यहोवा यों कहता है, “तुम्‍हारे पुरखाओं ने मुझमें कौन सा ऐसी कुटिलता पाई कि मुझ से दूर हट गए और निकम्‍मी वस्‍तुओं के पीछे होकर स्‍वयं निकम्‍मे हो गए?

6उन्होंने इतना भी न कहा, ‘जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया जो हमें जंगल में से और रेत और गड़हों से भरे हुए निर्जल और घोर अन्‍धकार के देश से जिसमें होकर कोई नहीं चलता, और जिसमें कोई मनुष्‍य नहीं रहता, हमें निकाल ले आया वह यहोवा कहाँ है?’

7और मैं तुमको इस उपजाऊ देश में ले आया कि उसका फल और उत्‍तम उपज खाओ; परन्‍तु मेरे इस देश में आकर तुमने इसे अशुद्ध किया, और मेरे इस निज भाग को घृणित कर दिया है।

8याजकों ने भी नहीं पूछा, “यहोवा कहाँ है?’ जो व्‍यवस्‍था सिखाते थे वे भी मुझको न जानते थे; चरवाहों ने भी मुझसे बलवा किया; भविष्‍यद्वक्‍ताओं ने बाल देवता के नाम से भविष्‍यद्वाणी की और व्यर्थ बातों के पीछे चले।

9“इस कारण यहोवा यह कहता है, मैं फिर तुमसे विवाद, और तुम्‍हारे बेटे और पोतों से भी प्रश्‍न करूँगा।

10कित्तियों के द्वीपों में पार जाकर देखो, या केदार में दूत भेजकर भली भाँति विचार करो और देखो; देखो, कि ऐसा काम कहीं और भी हुआ है? क्‍या किसी जाति ने अपने देवताओं को बदल दिया जो परमेश्‍वर भी नहीं हैं?

11परन्‍तु मेरी प्रजा ने अपनी महिमा को निकम्‍मी वस्‍तु से बदल दिया है।(गला 4:8)

12हे आकाश, चकित हो, बहुत ही थरथरा और सुनसान हो जा, यहोवा की यह वाणी है।

13क्‍योंकि मेरी प्रजा ने दो बुराइयाँ की हैं: उन्होंने मुझ बहते जल के सोते को त्‍याग दिया है, और, उन्होंने हौद बना लिए, वरन् ऐसे हौद जो टूट गए हैं, और जिनमें जल नहीं रह सकता।(प्रका. 7:17, प्रका. 21:6)

14“क्‍या इस्राएल दास है? क्‍या वह घर में जन्‍मा हुआ दास है? फिर वह क्‍यों शिकार बना?

15जवान सिंहों ने उसके विरुद्ध गरजकर नाद किया। उन्होंने उसके देश को उजाड़ दिया; उन्होंने उसके नगरों को ऐसा उजाड़ दिया कि उनमें कोई बसनेवाला ही न रहा।

16नोप और तहपन्‍हेस के निवासी भी तेरे देश की उपज चट कर गए हैं।

17क्‍या यह तेरी ही करनी का फल नहीं, जो तूने अपने परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया जो तुझे मार्ग में लिए चला?

18अब तुझे मिस्र के मार्ग से क्‍या लाभ है कि तू सीहोर का जल पीए? अथवा अश्‍शूर के मार्ग से भी तुझे क्‍या लाभ कि तू महानद का जल पीए?

19तेरी बुराई ही तेरी ताड़ना करेगी, और तेरा भटक जाना तुझे उलाहना देगा। जान ले और देख कि अपने परमेश्‍वर यहोवा को त्‍यागना, यह बुरी और कड़वी बात है; तुझे मेरा भय ही नहीं रहा, प्रभु सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।

20“क्‍योंकि बहुत समय पहले मैंने तेरा जूआ तोड़ डाला और तेरे बन्‍धन खोल दिए; परन्‍तु तूने कहा, ‘मैं सेवा न करूँगी।’ और सब ऊँचे-ऊँचे टीलों पर और सब हरे पेड़ों के नीचे तू व्‍यभिचारिण का सा काम करती रही।

21मैंने तो तुझे उत्‍तम जाति की दाखलता और उत्‍तम बीज करके लगाया था, फिर तू क्‍यों मेरे लिये जंगली दाखलता बन गई?

22चाहे तू अपने को सज्‍जी से धोए और बहुत सा साबुन भी प्रयोग करे, तौभी तेरे अधर्म का धब्‍बा मेरे सामने बना रहेगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।

23तू क्‍योंकर कह सकती है कि मैं अशुद्ध नहीं, मैं बाल देवताओं के पीछे नहीं चली? तराई में की अपनी चाल देख और जान ले कि तूने क्‍या किया है? तू वेग से चलनेवाली और इधर-उधर फिरनेवाली साँड़नी है,

24जंगल में पली हुई जंगली गदही जो कामातुर होकर वायु सूँघती फिरती है तब कौन उसे वश में कर सकता है? जितने उसको ढूँढ़ते हैं वे व्‍यर्थ परिश्रम न करें; क्‍योंकि वे उसे उसकी ॠतु में पाएँगे।

25अपने पाँव नंगे और गला सुखाए न रह। परन्‍तु तूने कहा, ‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, क्‍योंकि मेरा प्रेम दूसरों से लग गया है और मैं उनके पीछे चलती रहूँगी।’

26“जैसे चोर पकड़े जाने पर लज्‍जित होता है, वैसे ही इस्राएल का घराना राजाओं, हाकिमों, याजकों और भविष्‍यद्वक्‍ताओं समेत लज्‍जित होगा।

27वे काठ से कहते हैं, ‘तू मेरा बाप है,’ और पत्‍थर से कहते हैं, ‘तूने मुझे जन्‍म दिया है।’ इस प्रकार उन्होंने मेरी ओर मुँह नहीं पीठ ही फेरी है; परन्‍तु विपत्‍ति के समय वे कहते हैं, ‘उठकर हमें बचा !’

28परन्‍तु जो देवता तूने बना लिए हैं, वे कहाँ रहे? यदि वे तेरी विपत्‍ति के समय तुझे बचा सकते हैं तो अभी उठें; क्‍योंकि हे यहूदा, तेरे नगरों के बराबर तेरे देवता भी बहुत हैं।

29“तुम क्‍यों मुझसे वादविवाद करते हो? तुम सभों ने मुझसे बलवा किया है, यहोवा की यही वाणी है।

30मैंने व्‍यर्थ ही तुम्‍हारे बेटों की ताड़ना की, उन्होंने कुछ भी नहीं माना; तुमने अपने भविष्‍यद्वक्‍ताओं को अपनी ही तलवार से ऐसा काट डाला है जैसा सिंह फाड़ता है।

31हे लोगो, यहोवा के वचन पर ध्‍यान दो ! क्‍या मैं इस्राएल के लिये जंगल या घोर अन्‍धकार का देश बना? तब मेरी प्रजा क्‍यों कहती है कि हम तो आजाद हो गए हैं इसलिये तेरे पास फिर न आएँगे?

32क्‍या कुमारी अपने श्रृंगार या दुल्‍हिन अपनी सजावट भूल सकती है? तौभी मेरी प्रजा ने युगों से मुझे भुला दिया है।

33“प्रेम लगाने के लिये तू कैसी सुन्‍दर चाल चलती है ! बुरी स्‍त्रियों को भी तूने अपनी सी चाल सिखाई है।

34तेरे घाघरे में निर्दोष और दरिद्र लोगों के लहू का चिन्‍ह पाया जाता है; तूने उन्‍हें सेंध लगाते नहीं पकड़ा। परन्‍तु इन सबके होते हुए भी

35तू कहती है, ‘मैं निर्दोष हूँ; निश्‍चय उसका क्रोध मुझ पर से हट जाएगा।’ देख, तू जो कहती है कि मैंने पाप नहीं किया, इसलिये मैं तेरा न्‍याय कराऊँगा।

36तू क्‍यों नया मार्ग पकड़ने के लिये इतनी डाँवाडोल फिरती है? जैसे अश्‍शूरियों से तू लज्‍जित हुई वैसे ही मिस्रियों से भी होगी।

37वहाँ से भी तू सिर पर हाथ रखे हुए यों ही चली आएगी, क्‍योंकि जिन पर तूने भरोसा रखा है उनको यहोवा ने निकम्‍मा ठहराया है, और उनके कारण तू सफल न होगी।


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