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1“यहूदा का पाप लोहे की टाँकी और हीरे की नोक से लिखा हुआ है; वह उनके हृदयरूपी पटिया और उनकी वेदियों के सींगों पर भी खुदा हुआ है।

2उनकी वेदियाँ और अशेरा नामक देवियाँ जो हरे पेड़ों के पास और ऊँचे टीलों के ऊपर हैं, वे उनके लड़कों को भी स्‍मरण रहती हैं।

3हे मेरे पर्वत, तू जो मैदान में है, तेरी धन-सम्‍पत्‍ति और भण्‍डार मैं तेरे पाप के कारण लुट जाने दूँगा, और तेरे पूजा के ऊँचे स्‍थान भी जो तेरे देश में पाए जाते हैं।

4तू अपने ही दोष के कारण अपने उस भाग का अधिकारी न रहने पाएगा जो मैंने तुझे दिया है, और मैं ऐसा करूँगा कि तू अनजाने देश में अपने शत्रुओं की सेवा करेगा, क्‍योंकि तूने मेरे क्रोध की आग ऐसी भड़काई है जो सर्वदा जलती रहेगी।”

5यहोवा यों कहता है, “श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्‍य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है।

6वह निर्जल देश के अधमरे पेड़ के समान होगा और कभी भलाई न देखेगा। वह निर्जल और निर्जन तथा लोनछाई भूमि पर बसेगा।

7“धन्‍य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्‍वर को अपना आधार माना हो।

8वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के किनारे पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब धूप होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्‍ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्‍ता न होगी, क्‍योंकि वह तब भी फलता रहेगा।”

9मन तो सब वस्‍तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उसमें असाध्‍य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?

10“मैं यहोवा मन को खोजता और हृदय को जाँचता हूँ ताकि प्रत्‍येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात् उसके कामों का फल दूँ।”(1 पत. 1:17, प्रका. 2:23, प्रका. 20:12,13, प्रका. 22:12)

11जो अन्‍याय से धन बटोरता है वह उस तीतर के समान होता है जो दूसरी चिड़िया के दिए हुए अण्ड़ो को सेती है, उसकी आधी आयु में ही वह उस धन को छोड़ जाता है, और अन्‍त में वह मूढ़ ही ठहरता है।

12हमारा पवित्र आराधनालय आदि से ऊँचे स्‍थान पर रखे हुए एक तेजोमय सिंहासन के समान है।

13हे यहोवा, हे इस्राएल के आधार, जितने तुझे छोड़ देते हैं वे सब लज्‍जित होंगे; जो तुझसे भटक जाते हैं उनके नाम भूमि ही पर लिखे जाएँगे, क्‍योंकि उन्होंने बहते जल के सोते यहोवा को त्‍याग दिया है।

14हे यहोवा मुझे चंगा कर, तब मैं चंगा हो जाऊँगा; मुझे बचा, तब मैं बच जाऊँगा; क्‍योंकि मैं तेरी ही स्‍तुति करता हूँ।

15सुन, वे मुझसे कहते हैं, “यहोवा का वचन कहाँ रहा? वह अभी पूरा हो जाए !”

16परन्‍तु तू मेरा हाल जानता है, मैंने तेरे पीछे चलते हुए उतावली करके चरवाहे का काम नहीं छोड़ा; न मैंने उस आनेवाली विपत्‍ति के दिन की लालसा की है; जो कुछ मैं बोला वह तुझ पर प्रगट था।

17मुझे न घबरा; संकट के दिन तू ही मेरा शरणस्‍थान है।

18हे यहोवा, मेरी आशा टूटने न दे, मेरे सतानेवालों ही की आशा टूटे; उन्‍हीं को विस्‍मित कर; परन्‍तु मुझे निराशा से बचा; उन पर विपत्‍ति डाल और उनको चकनाचूर कर दे !

19यहोवा ने मुझसे यों कहा, “जाकर सदर फाटक में खड़ा हो जिससे यहूदा के राजा वरन् यरूशलेम के सब रहनेवाले भीतर-बाहर आया जाया करते हैं;

20और उनसे कह, ‘हे यहूदा के राजाओं और सब यहूदियों, हे यरूशलेम के सब निवासियों, और सब लोगों जो इन फाटकों में से होकर भीतर जाते हो, यहोवा का वचन सुनो।

21यहोवा यों कहता है, सावधान रहो, विश्राम के दिन कोई बोझ मत उठाओ; और न कोई बोझ यरूशलेम के फाटकों के भीतर ले आओ।(यूह. 5:10)

22विश्राम के दिन अपने-अपने घर से भी कोई बोझ बाहर मत लेजाओ और न किसी रीति का काम काज करो, वरन् उस आज्ञा के अनुसार जो मैंने तुम्‍हारे पुरखाओं को दी थी, विश्राम के दिन को पवित्र माना करो।

23परन्‍तु उन्होंने न सुना और न कान लगाया, परन्‍तु इसके विपरीत हठ किया कि न सुनें और ताड़ना से भी न मानें।

24“परन्‍तु यदि तुम सचमुच मेरी सुनो, यहोवा की यह वाणी है, और विश्राम के दिन इस नगर के फाटकों के भीतर कोई बोझ न ले आओ और विश्रामदिन को पवित्र मानो, और उसमें किसी रीति का काम काज न करो,

25तब तो दाऊद की गद्दी पर विराजमान राजा, रथों और घोड़ों पर चढ़े हुए हाकिम और यहूदा के लोग और यरूशलेम के निवासी इस नगर के फाटकों से होकर प्रवेश किया करेंगे और यह नगर सर्वदा बसा रहेगा।

26लोग होमबलि, मेलबलि अन्नबलि, लोबान और धन्‍यवादबलि लिए हुए यहूदा के नगरों से और यरूशलेम के आसपास से, बिन्‍यामीन के देश और नीचे के देश से, पहाड़ी देश और दक्षिण देश से, यहोवा के भवन में आया करेंगे।

27परन्‍तु यदि तुम मेरी सुनकर विश्राम के दिन को पवित्र न मानो, और उस दिन यरूशलेम के फाटकों से बोझ लिए हुए प्रवेश करते रहो, तो मैं यरूशलेम के फाटकों में आग लगाऊँगा; और उससे यरूशलेम के महल भी भस्‍म हो जाएँगे और वह आग फिर न बुझेगी’।”


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