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1“फिर जब आशीष और शाप की ये सब बातें जो मैंने तुझको कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियों के मध्‍य में रहकर, जहाँ तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझको बरबस पहुँचाएगा, इन बातों को स्‍मरण करे,

2और अपनी सन्‍तान सहित अपने सारे मन और सारे प्राण से अपने परमेश्‍वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ उसकी बातें माने;

3तब तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझको बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशों के लोगों में से जिनके मध्‍य में वह तुझको तितर-बितर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा।

4चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुँचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझको वहाँ से ले आकर इकट्ठा करेगा।

5और तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुँचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिकारी हुए थे, और तू फिर उसका अधिकारी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझको तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा।

6और तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम करे, जिससे तू जीवित रहे।

7और तेरा परमेश्‍वर यहोवा ये सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझसे बैर करके तेरे पीछे पड़ेंगे भेजेगा।

8और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ।

9और यहोवा तेरी भलाई के लिये तेरे सब कामों में, और तेरी सन्‍तान, और पशुओं के बच्‍चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्‍योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिये वैसा ही आनन्‍द करेगा, जैसा उसने तेरे पूर्वजों के ऊपर किया था;

10क्‍योंकि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियों को जो इस व्‍यवस्‍था की पुस्‍तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपने परमेश्‍वर यहोवा की ओर अपने सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।

11“देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूँ, वह न तो तेरे लिये अनोखी, और न दूर है।

12और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, ‘कौन हमारे लिये आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हमको सुनाए कि हम उसे मानें?’

13और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, ‘कौन हमारे लिये समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हमको सुनाए कि हम उसे मानें?’

14परन्‍तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन् तेरे मुँह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।

15“सुन, आज मैंने तुझको जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।

16क्‍योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूँ, कि अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मार्गो पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को मानना, जिससे तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्‍वर यहोवा उस देश में जिसका अधिकारी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे।

17परन्‍तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत् करे और उनकी उपासना करने लगे,

18तो मैं तुम्‍हें आज यह चेतावनी देता हूँ कि तुम नि:सन्‍देह नष्‍ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिकारी होने के लिये तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनों के लिये रहने न पाओगे।

19मैं आज आकाश और पृथ्‍वी दोनों को तुम्‍हारे सामने इस बात की साक्षी बनाता हूँ, कि मैंने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्‍हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें;

20इसलिये अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उससे लिपटे रहो; क्‍योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा।”


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