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1सोना कैसे खोटा हो गया, अत्‍यन्‍त खरा सोना कैसे बदल गया है? पवित्रस्‍थान के पत्‍थर तो हर एक सड़क के सिरे पर फेंक दिए गए हैं।

2सिय्‍योन के उत्तम पुत्र जो कुन्‍दन के तुल्‍य थे, वे कुम्‍हार के बनाए हुए मिट्टी के घड़ों के नाई कैसे तुच्‍छ गिने गए हैं!

3गीदड़िन भी अपने बच्‍चों को थन से लगाकर पिलाती है, परन्‍तु मेरे लोगों की बेटी वन के शुतुर्मुर्गों के तुल्‍य निर्दयी हो गई है।

4दूध -पीते बच्‍चों की जीभ प्‍यास के मारे तालू में चिपट गई है; बालबच्‍चे रोटी माँगते हैं, परन्‍तु कोई उनको नहीं देता।

5जो स्‍वादिष्‍ट भोजन खाते थे, वे अब सड़कों में व्‍याकुल फिरते हैं; जो मखमल के वस्‍त्रों में पले थे अब घूरों पर लेटते हैं ।**

6मेरे लोगों की बेटी का अधर्म सदोम के पाप से भी अधिक हो गया जो किसी के हाथ डाले बिना भी क्षण भर में उलट गया था।

7उसके कुलीन हिम से निर्मल और दूध से भी अधिक उज्‍ज्‍वल थे; उनकी देह मूंगों से अधिक लाल, और उनकी सुन्‍दरता नीलमणि की सी थी।

8परन्‍तु अब उनका रूप अन्‍धकार से भी अधिक काला है, वे सड़कों में पहचाने नहीं जाते; उनका चमड़ा हड्डियों में सट गया, और लकड़ी के नाई सूख गया है।

9तलवार के मारे हुए भूख के मारे हुओं से अधिक अच्‍छे थे जिनका प्राण खेत की उपज बिना भूख के मारे सूखता जाता है।

10दयालु स्‍त्रियों ने अपने ही हाथों से अपने बच्‍चों को पकाया है; मेरे लोगों के विनाश के समय वे ही उनका आहार बन गए।

11यहोवा ने अपनी पूरी जलजलाहट प्रगट की, उस ने अपना कोप बहुत ही भड़काया;** और सिय्‍योन में ऐसी आग लगाई जिस से उसकी नींव तक भस्‍म हो गई है।

12पृथ्‍वी का कोई राजा या जगत का कोई वासी इसकी कभी प्रतीति न कर सकता था, कि द्रोही और शत्रु यरूशलेम के फाटकों के भीतर घुसने पाएँगे।

13यह उसके भविष्‍यद्वक्‍ताओं के पापों और उसके याजकों के अधर्म के कामों के कारण हुआ है; क्‍योंकि वे उसके बीच धर्मियों की हत्‍या करते आए हैं।

14वे अब सड़कों में अन्‍धे सरीखे मारे मारे फिरते हैं, और मानो लोहू की छींटों से यहाँ तक अशुद्ध हैं कि कोई उनके वस्‍त्र नहीं छू सकता।

15लोग उनको पुकारकर कहते हैं, “अरे अशुद्ध लोगो, हट जाओ ! हट जाओ ! हम को मत छूओ जब वे भागकर मारे मारे फिरने लगे, तब अन्‍यजाति लोगों ने कहा, “भविष्‍य में वे यहाँ टिकने नहीं पाएँगे।”

16यहोवा ने अपने कोप से उन्‍हें तितर-बितर किया, वह फिर उन पर दया दृष्‍टि न करेगा; न तो याजकों का सम्मान हुआ, और न पुरनियों पर कुछ अनुग्रह किया गया।

17हमारी आँखें व्‍यर्थ ही सहायता की बाट जोहते जोहते रह गई हैं, हम लगातार एक ऐसी जाति की ओर ताकते रहे जो बचा नहीं सकी।

18लोग हमारे पीछे ऐसे पड़े कि हम अपने नगर के चौकों में भी नहीं चल सके; हमारा अन्‍त निकट आया; हमारी आयु पूरी हुई; क्‍योंकि हमारा अन्‍त आ गया था।

19हमारे खदेड़नेवाले आकाश के उकाबों से भी अधिक वेग से चलते थे; वे पहाड़ों पर हमारे पीछे पड़ गए और जंगल में हमारे लिये घात लगाकर बैठ गए।

20यहोवा का अभिषिक्‍त जो हमारा प्राण** था, और जिसके विषय हम ने सोचा था कि अन्‍यजातियों के बीच हम उसकी शरण में जीवित रहेंगे, वह उनके खोदे हुए गड़हों में पकड़ा गया।

21हे एदोम की पुत्री, तू जो ऊज देश में रहती है, हर्षित और आनन्‍दित रह; परन्‍तु यह कटोरा तुझ तक भी पहुँचेगा, और तू मतवाली होकर अपने आप को नंगा करेगी।

22हे सिय्‍योन की पुत्री, तेरे अधर्म का दण्‍ड समाप्‍त हुआ, वह फिर तुझे बँधुआई में न ले जाएगा; परन्‍तु हे एदोम की पुत्री, तेरे अधर्म का दण्‍ड वह तुझे देगा, वह तेरे पापों को प्रगट कर देगा।


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