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1अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्‍मरण रख, इस से पहिले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएँ, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता।

2इस से पहिले कि सूर्य और प्रकाश और चन्‍द्रमा और तारागण अंधेरे हो जाएँ, और वर्षा होने के बाद बादल फिर घिर आएँ;

3उस समय घर के पहरूये काँपेंगे, और बलवन्‍त झुक जाएँगे, और पिसनहारियाँ थोड़ी रहने के कारण काम छोड़ देंगी, और झरोखों में से देखनेवालियाँ अन्‍धी हो जाएगी,

4और सड़क की ओर के किवाड़ बन्‍द होंगे, और चक्‍की पीसने का शब्‍द धीमा होगा, और तड़के चिडि़या बोलते ही एक उठ जाएगा,** और सब गानेवालियों का शब्‍द धीमा हो जाएगा।

5फिर जो ऊँचा हो उससे भय खाया जाएगा, और मार्ग में डरावनी वस्‍तुएँ मानी जाएँगी; और बादाम का पेड़ फूलेगा, और टिड्डी भी भारी लगेगी, और भूख बढ़ानेवाला फल फिर काम न देगा; क्‍योंकि मनुष्‍य अपने सदा के घर को जायेगा, और रोने पीटनेवाले सड़क सड़क फिरेंगे।

6उस समय चान्‍दी का तार दो टूकड़े हो जाएगा और सोने का कटोरा टूटेगा; और सोते के पास घड़ा फूटेगा, और कुण्‍ड के पास रहट टूट जाएगा,

7जब मिट्टी ज्‍यों की त्‍यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्‍मा परमेश्‍वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी।

8उपदेशक कहता है, सब व्‍यर्थ ही व्‍यर्थ; सब कुछ व्‍यर्थ है।

9उपदेशक जो बुद्धिमान था, वह प्रजा को ज्ञान भी सिखाता रहा, और ध्‍यान लगाकर और पूछपाछ करके बहुत से नीतिवचन क्रम से रखता था।

10उपदेशक ने मनभावने शब्‍द खोजे और सीधाई से ये सच्‍ची बातें लिख दीं।

11बुद्धिमानों के वचन पैनों के नाई होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के नाई हैं, क्‍योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं।

12हे मेरे पुत्र, इन्‍ही में चौकसी सीख। बहुत पुस्‍तकों की रचना का अन्‍त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है।

13सब कुछ सुना गया; अन्‍त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्‍योंकि मनुष्‍य का सम्‍पूर्ण कर्त्तव्‍य यही है।

14क्‍योंकि परमेश्‍वर सब कामों और सब गुप्‍त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्‍याय करेगा।


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