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1मलाकी के द्वारा इस्राएल के विषय में कहा हुआ यहोवा का भारी वचन।।

2यहोवा यह कहता है, “मैं ने तुम से प्रेम किया है, परन्‍तु तुम पूछते हो, ‘तू ने किस बात में हम से प्रेम किया है?’” यहोवा की यह वाणी है, “क्‍या एसाव याकूब का भाई न था?

3तौभी मैं ने याकूब से प्रेम किया परन्‍तु एसाव को अप्रिय जानकर उसके पहाड़ों को उजाड़ डाला, और उसकी बपौती को जंगल के गीदड़ों का कर दिया है।”( रोम 9:13)

4एदोम कहता है, “हमारा देश उजड़ गया है, परन्‍तु हम खण्‍डहरों को फिरकर बसाएँगे;” सेनाओं का यहोवा यों कहता है, “यदि वे बनाएँ भी, परन्‍तु मैं ढा दूँगा; उनका नाम दुष्‍ट जाति पड़ेगा, और वे ऐसे लोग कहलाएँगे जिन पर यहोवा सदैव क्रोधित रहे।”

5तुम्‍हारी आँखें इसे देखेंगी, और तुम कहोगे, “यहोवा का प्रताप इस्राएल के सिवाने की परली ओर भी बढ़ता जाए।”

6“पुत्र पिता का, और दास स्‍वामी का आदर करता है। यदि मैं पिता हूँ, तो मेरा आदर मानना कहाँ है? और यदि मैं स्‍वामी हूँ, तो मेरा भय मानना कहाँ? सेनाओं का यहोवा, तुम याजकों से भी जो मेरे नाम का अपमान करते हो यही बात पूछता है। परन्‍तु तुम पूछते हो, ‘हम ने किस बात में तेरे नाम का अपमान किया है?’

7तुम मेरी वेदी पर अशुद्ध भोजन चढ़ाते हो। तौभी तुम पूछते हो, ‘हम किस बात में तुझे अशुद्ध ठहराते हैं?’ इस बात में भी, कि तुम कहते हो, ‘यहोवा की मेज़ तुच्‍छ है।’

8जब तुम अन्‍धे पशु को बलि करने के लिये समीप ले आते हो तो क्‍या यह बुरा नहीं? और जब तुम लंगड़े वा रोगी पशु को ले आते हो, तो क्‍या यह बुरा नहीं? अपने हाकिम के पास ऐसी भेंट ले आओ; क्‍या वह तुम से प्रसन्‍न होगा वा तुम पर अनुग्रह करेगा? सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।

9“अब मैं तुम से कहता हूँ, ईश्‍वर से प्रार्थना करो कि वह हम लोगों पर अनुग्रह करे। यह तुम्‍हारे हाथ से हुआ है; तब कया तुम समझते हो कि परमेश्‍वर तुम में से किसी का पक्ष करेगा? सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।

10भला होता कि तुम में से कोई मन्‍दिर के किवाड़ों को बन्‍द करता कि तुम मेरी वेदी पर व्‍यर्थ आग जलाने न पाते! सेनाओं के यहोवा का यह वचन है, मैं तुम से कदापि प्रसन्न नहीं हूँ, और न तुम्‍हारे हाथ से भेंट ग्रहण करूँगा।

11क्‍योंकि उदयाचल से लेकर अस्‍ताचल तक अन्‍यजातियों में मेरा नाम महान है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट चढ़ाई जाती है; क्‍योंकि अन्‍यजातियों में मेरा नाम महान है, सेनाओं के यहोवा का वचन है। (मत्ती. 8:11,लूका 13:29,2 थिस्स 1:12,प्रका 15:4)

12परन्‍तु तुम लोग उसको यह कहकर अपवित्र ठहराते हो कि यहोवा की मेज़ अशुद्ध है, और जो भोजनवस्‍तु उस पर से मिलती है वह भी तुच्‍छ है। (1 कुरि 10:21)

13फिर तुम यह भी कहते हो, ‘यह कैसा बड़ा उपद्रव है! सेनाओं के यहोवा का यह वचन है। तुम ने उस भोजनवस्‍तु के प्रति नाक भौं सिकोड़ी, और अत्‍याचार से प्राप्‍त किए हुए और लंगड़े और रोगी पशु की भेंट ले आते हो! क्‍या मैं ऐसी भेंट तुम्‍हारे हाथ से ग्रहण करूँ? यहोवा का यही वचन है।

14जिस छली के झुण्‍ड में नरपशु हो परन्‍तु वह मन्‍नत मानकर परमेश्‍वर को वर्जित पशु चढ़ाए, वह शापित है; मैं तो महाराजा हूँ, और मेरा नाम अन्‍यजातियों में भययोग्‍य है, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।


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