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1भला होता कि तू मेरे भाई के समान होता, जिस ने मेरी माता की छातियों से दूध पिया! तब मैं तुझे बाहर पाकर तेरा चुम्‍बन लेती, और कोई मेरी निन्‍दा न करता।

2मैं तुझ को अपनी माता के घर ले चलती, और वह मुझ को सिखाती, और मैं तुझे मसाला मिला हुआ दाखमघु, और अपने अनारों का रस पिलाती।

3काश, उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे होता, और अपने दहिने हाथ से वह मेरा आलिंगन करता!

4हे यरूशलेम की पुत्रियों, मैं तुम को शपथ धराती हूँ, कि तुम मेरे प्रेमी को न जगाना जब तक वह स्‍वयं न उठना चाहे।

5यह कौन है जो अपने प्रेमी पर टेक लगाये हुए जंगल से चली आती है? सेब के पेड़ के नीचे मैं ने तुझे जगया। वहाँ तेरी माता ने तुझे जन्‍म दिया वहाँ तेरी माता को पीड़ाएँ उठीं।

6मुझे नगीने की समान अपने हृदय पर लगा रख, और ताबीज की समान अपनी बाँह पर रख; क्‍योंकि प्रेम मृत्‍यु के तुल्‍य सामर्थी है, और ईर्ष्या कब्र के समान निर्दयी है। उसकी ज्‍वाला अग्‍नि की दमक है वरन परमेश्‍वर ही की ज्‍वाला है।(यशा 49:16)

7पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता, और न महानदों से डूब सकता है। यदि कोई अपने घर की सारी सम्‍पत्ति प्रेम की बदले दे दे तौभी वह अत्‍यन्‍त तुच्‍छ ठहरेगी।

8हमारी एक छोटी बहिन है, जिसकी छातियाँ अभी नहीं उभरी। जिस दिन हमारी बहिन के ब्‍याह की बात लगे, उस दिन हम उसके लिये क्‍या करें?

9यदि वह शहरपनाह हो तो हम उस पर चाँदी का कंगूरा बनाएँगे; और यदि वह फाटक का किवाड़ हो, तो हम उस पर देवदारू की लकड़ी के पटरे लगाएँगे।

10मैं शहरपनाह थी और मेरी छातियाँ उसके गुम्‍मट; तब मैं अपने प्रेमी की दृष्‍टि में शान्‍ति लानेवाले के समान थी।

11बाल्‍हामोन में सुलैमान की एक दाख की बारी थी; उस ने वह दाख की बारी रखवालों को सौंप दी; हर एक रखवाले को उसके फलों के लिये चान्‍दी के हजार हजार टुकड़े देने थे।(मत्ती 21:33)

12मेरी निज दाख की बारी मेरे ही लिये है; हे सुलैमान, हजार तुझी को और फल के रखवालों को दो सौ मिलें।

13तू जो बारियों में रहती है, मेरे मित्र तेरा बोल सुनना चाहते हैं; उसे मुझे भी सुनने दे।

14हे मेरे प्रेमी, शीघ्रता कर, और सुगन्‍धद्रव्‍यों के पहाड़ों पर चिकारे वा जवान हरिण के समान बन जा।


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