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1आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्‍वी की सृष्‍टि की।

2पृथ्‍वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी, और गहिरे जल के ऊपर अन्‍धियारा था; तथा परमेश्‍वर का आत्‍मा जल के ऊपर मण्‍डराता था।

3तब परमेश्‍वर ने कहा, “उजियाला हो,”* तो उजियाला हो गया। (2 कुरि. 4:6)

4और परमेश्‍वर ने उजियाले को देखा कि अच्‍छा है;* और परमेश्‍वर ने उजियाले को अन्‍धियारे से अलग किया।

5और परमेश्‍वर ने उजियाले को दिन और अन्‍धियारे को रात कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।

6फिर परमेश्‍वर ने कहा,* “जल के बीच एक ऐसा अन्‍तर हो कि जल दो भाग हो जाए।”

7तब परमेश्‍वर ने एक अन्‍तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; और वैसा ही हो गया।

8और परमेश्‍वर ने उस अन्‍तर को आकाश कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।

9फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्‍थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे,” और वैसा ही हो गया। (2 पत 3:5)

10और परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्‍वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्‍छा है। (इब्रा 1:10,इब्रा 11:3)

11फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्‍वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्‍ही में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्‍वी पर उगें,” और वैसा ही हो गया। (1 कुरि 15:38)

12इस प्रकार पृथ्‍वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्‍ही में होते हैं उगे; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्‍छा है।

13तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।

14फिर परमेश्‍वर ने कहा, “दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्‍तर में ज्योंतियों हों; और वे चिन्‍हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों;

15और वे ज्योंतियाँ आकाश के अन्‍तर में पृथ्‍वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” और वैसा ही हो गया।

16तब परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योंतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्‍योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्‍योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया।

17परमेश्‍वर ने उनको आकाश के अन्‍तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्‍वी पर प्रकाश दें,

18तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्‍धियारे से अलग करें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्‍छा है।

19तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया।

20फिर परमेश्‍वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्‍वी के ऊपर आकाश के अन्‍तर में उड़ें।”

21इसलिये परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्‍तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्‍टि की जो चलते-फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्‍टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्‍छा है।

22परमेश्‍वर ने यह कहके उनको आशीष दी,* “फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्‍वी पर बढ़ें।”

23तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया।

24फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्‍वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्‍तु, और पृथ्‍वी के वनपशु, जाति-जाति के अनुसार उत्‍पन्‍न हों,” और वैसा ही हो गया।

25इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्‍वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्‍तुओं को बनाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्‍छा है।

26फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनुष्‍य* को अपने स्‍वरूप के अनुसार* अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्‍वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्‍तुओं पर जो पृथ्‍वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (याकू 3:9)

27तब परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को अपने स्‍वरूप के अनुसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्‍वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्‍यों की सृष्‍टि की। (मत्ती 19:4,मर 10:6,प्रेरि 17:29,1 कुरि 11:7,कुलु 3:10,1 तीमु 2:13)

28और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्‍वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्‍वी पर रेंगनेवाले सब जन्‍तुओं पर अधिकार रखो।”

29फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्‍वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुमको दिए हैं; वे तुम्‍हारे भोजन के लिये हैं; (रोम 14:2)

30और जितने पृथ्‍वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्‍वी पर रेंगनेवाले जन्‍तु हैं, जिनमें जीवन के प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो गया।

31तब परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सबको देखा, तो क्‍या देखा, कि वह बहुत ही अच्‍छा है। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। (1 तीमु 4:4)


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