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1एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका नाम एक पुरूष था।

2उसने अपनी माता से कहा, “जो ग्‍यारह सौ टुकड़े चाँदी तुझ से ले लिए गए थे, जिनके विषय में तू ने मेरे सुनते भी शाप दिया था, वे मेरे पास हैं; मैं ने ही उनको ले लिया था।” उसकी माता ने कहा, “मेरे बेटे पर यहोवा की और से आशीष होए।”

3जब उसने वे ग्‍यारह सौ टुकड़े चाँदी अपनी माता को फेर दिए; तब माता ने कहा, “मैं अपनी ओर से अपने बेटे के लिये यह रूपया यहोवा को निश्‍चय अर्पण करती हूँ ताकि उससे एक मूरत खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई जाए, इसलिये अब मैं उसे तुझ को फेर देती हूँ।”

4जब उसने वह रूपया अपनी माता को फेर दिया, तब माता ने दो सौ टुकड़े ढलवैयों को दिए, और उसने उनसे एक मूर्त्ति खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई; और वे मीका के घर में रहीं।

5मीका के पास एक देवस्‍थान था, तब उसने एक एपोद, और कई एक गृहदेवता बनवाए; और अपने एक बेटे का संस्‍कार करके उसे अपना पुरोहित ठहरा लिया

6उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था।

7यहूदा के कुल का एक जवान लेवीय यहूदा के बेतलेहेम में परदेशी होकर रहता था।

8वह यहूदा के बेतलेहेम नगर से इसलिये निकला, कि जहाँ कहीं स्‍थान मिले वहाँ जा रहे। चलते चलते वह एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर पर आ निकला।

9मीका ने उससे पूछा, “तू कहाँ से आता है?” उसने कहा, “मैं तो यहूदा के बेतलेहेम से आया हुआ एक लेवीय हूँ, और इसलिये चला जाता हूँ, कि जहाँ कहीं ठिकाना मुझे मिले वहीं रहूँ।”

10मीका ने उससे कहा, “मेरे संग रहकर मेरे लिये पिता और पुरोहित बन, और मैं तुझे प्रति वर्ष दस टुकड़े रूपे, और एक ज़ोडा कपड़ा, और भोजनवस्‍तु दिया करूँगा,” तब वह लेवीय भीतर गया।

11और वह लेवीय उस पुरूष के संग रहने को प्रसन्न हुआ; और वह जवान उसके साथ बेटा सा बना रहा।

12तब मीका ने उस लेवीय का संस्‍कार किया, और वह जवान उसका पुरोहित होकर मीका के घर में रहने लगा।

13और मीका सोचता था, कि अब मैं जानता हूँ कि यहोवा मेरा भला करेगा, क्‍योंकि मैं ने एक लेवीय को अपना पुरोहित कर रखा है।


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