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1“पुकार कर देख; क्‍या कोई है जो तुझे उत्‍तर देगा? और पवित्रों में से तू किस की ओर फिरेगा?

2क्‍योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नाश हो जाता है, और भोला जलते जलते मर मिटता है।

3मैं ने मूढ़ को जड़ पकड़ते देखा है; परन्‍तु अचानक मैं ने उसके वासस्‍थान को धिक्‍कारा।

4उसके बच्चे उद्धार से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्‍हें छुड़ाए।

5उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन् कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्‍यासा उनके धन के लिये फन्‍दा लगाता है।

6क्‍योंकि विपत्‍ति धूल से उत्‍पन्न नहीं होती, और न कष्‍ट भूमि में से उगता है;

7परन्‍तु जैसे चिंगारियाँ ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं, वैसे ही मनुष्‍य कष्‍ट ही भोगने के लिये उत्‍पन्न हुआ है।

8“परन्‍तु मैं तो परमेश्वर ही को खोजता रहूँगा और अपना मुक़द्दमा परमेश्‍वर पर छोड़ दूँगा।

9वह तो ऐसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती, और इतने आश्‍चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते।

10वही पृथ्‍वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतों पर जल बरसाता है।

11इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊँचे स्‍थान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊँचे पर पहुँचकर बचते हैं।(लूका 1:52, याकू. 4:10)

12वह तो धूर्त लोगों की कल्‍पनाएँ व्‍यर्थ कर देता है, और उनके हाथों से कुछ भी बन नहीं पड़ता।

13वह बुद्धिमानों को उनकी धूर्तता ही में फँसाता है; और कुटिल लोगों की युक्ति दूर की जाती है।(1 कुरि. 3:19)

14उन पर दिन को अन्‍धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात की नाई टटोलते फिरते हैं।

15परन्‍तु वह दरिद्रों को उनके वचनरुपी तलवार से** और बलवानों के हाथ से बचाता है।

16इसलिये कंगालों को आशा होती है, और कुटिल मनुष्‍यों का मुँह बन्‍द हो जाता है।

17“देख, क्‍या ही धन्‍य वह मनुष्‍य, जिसको परमेश्वर ताड़ना देता है; इसलिये तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्‍छ मत जान।

18क्‍योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बान्‍धता है; वही मारता है, और वही अपने हाथों से चंगा भी करता है।

19वह तुझे छः विपत्‍तियों से छुड़ाएगा; वरन् सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी।

20अकाल में वह तुझे मुत्‍यु से, और युद्ध में तलवार की धार से बचा लेगा।

21तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा।

22तू उजाड़ और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्‍तुओं से डर न लगेगा।

23वरन् मैदान के पत्‍थर भी तुझ से वाचा बाँधे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे।

24और तुझे निश्‍चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपने निवास में देखे तब कोई वस्‍तु खोई न होगी।

25तुझे यह भी निश्‍चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे। और मेरे सन्‍तान पृथ्‍वी की घास के तुल्‍य बहुत होंगे।

26जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी अवस्‍था का होकर क़ब्र को पहुँचेगा।

27देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपने लाभ के लिये ध्‍यान में रख।”


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