1तब अय्यूब ने कहा,
2“ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो।
3क्या व्यर्थ बातों का अन्त कभी होगा? तू कौन सी बात से झिड़ककर उत्तर देता है?
4जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरुद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरुद्ध सिर हिला सकता।
5वरन् मैं अपने वचनों से तुम को हियाव दिलाता, और बातों** से शान्ति देकर तुम्हारा शोक घटा देता।
6“चाहे मैं बोलूँ तौभी मेरा शोक न घटेगा, चाहे मैं चुप रहूँ, तौभी मेरा दु:ख कुछ कम न होगा।
7परन्तु अब उसने मुझे उकता दिया है; उसने मेरे सारे परिवार को उजाड़ डाला है।
8और उसने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरुद्ध साक्षी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध खड़ा होकर मेरे सामने साक्षी देता है।
9उसने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरुद्ध दांत पीसता; और मेरा बैरी मुझ को आँखें दिखाता है।(प्रेरि. 7:54)
10अब लोग मुझ पर मुँह पसारते हैं, और मेरी नामधराई करके मेरे गाल पर थप्पड़ मारते, और मेरे विरुद्ध भीड़ लगाते हैं।
11परमेश्वर ने मुझे कुटिलों के वश में कर दिया, और दुष्ट लोगों के हाथ में फेंक दिया है।
12मैं सुख से रहता था, और उसने मुझे चूर-चूर कर डाला; उसने मेरी गर्दन पकड़कर मुझे टुकड़े-टुकड़े कर दिया; फिर उसने मुझे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है।
13उसके तीर मेरे चारों ओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय होकर मेरे गुर्दों को बेधता है, और मेरा पित्त भूमि पर बहाता है।
14वह शूर की नाई मुझ पर धावा करके मुझे चोट पर चोट पहुँचाकर घायल करता है।
15मैं ने अपनी खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग मिट्टी में मैला कर दिया है।
16रोते-रोते मेरा मुँह सूज गया है, और मेरी आँखों पर घोर अन्धकार छा गया है;
17तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्र है।
18“हे पृथ्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रुके।
19अब भी स्वर्ग में मेरा साक्षी है, और मेरा गवाह ऊपर है।
20मेरे मित्र मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं परमेश्वर के सामने आँसू बहाता हूँ,
21कि कोई परमेश्वर के विरुद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़द्दमा उसके पड़ोसी के विरुद्ध लड़े।
22क्योंकि थोड़े ही वर्षों के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊँगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूँगा।