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1(अय्‍यूब सोपर को उत्तर देता है) तब अय्‍यूब ने कहा;

2“निःसन्‍देह मनुष्‍य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी।

3परन्‍तु तुम्‍हारी नाई मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ नीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो?

4मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन लिया करता था; परन्‍तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हँसते हैं; जो धर्मी और खरा मनुष्‍य है, वह हँसी का कारण हो गया है।

5दुःखी लोग तो सुखी लोगों की समझ में तुच्‍छ जाने जाते हैं; और जिनके पाँव फिसलते हैं उनका अपमान अवश्‍य ही होता है।

6डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो परमेश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; अर्थात् उनका ईश्वर उनकी मुट्ठी में रहता हैं;

7“पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएँगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे।

8पृथ्‍वी पर ध्‍यान दे, तब उससे तुझे शिक्षा मिलेगी; और समुद्र की मछलियाँ भी तुझ से वर्णन करेंगी।

9कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है।(रोमि. 1:20)

10उसके हाथ में एक-एक जीवधारी का प्राण, और एक-एक देहधारी में मनुष्‍य की आत्‍मा भी रहती है।

11जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्‍या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते?

12बूढ़ों में बुद्धि पाई जाती है, और लम्‍बी आयुवालों में समझ होती तो है।

13“परमेश्वर में पूरी बुद्धि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं।

14देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्‍य को वह बन्‍द करे, वह फिर खोला नहीं जाता।(प्रका. 3:7)

15देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृथ्‍वी उलट जाती है।

16उसमें सामर्थ और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोखा देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनों उसी के हैं।

17वह मंत्रियों को लूटकर बन्‍धुआई में ले जाता, और न्‍यायियों को मूर्ख बना देता है।

18वह राजाओं का अधिकार तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्‍धन बन्‍धवाता है।

19वह याजकों को लूटकर बन्‍धुआई में ले जाता और सामर्थियों को उलट देता है।(लूका 1:52)

20वह विश्‍वासयोग्‍य पुरुषों से बोलने की शक्ति और पुरनियों से विवेक की शक्ति हर लेता है।

21वह हाकिमों को अपमान से लादता, और बलवानों के हाथ ढीले कर देता है।

22वह अन्‍धियारे की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्‍यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है।

23वह जातियों को बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बन्‍धुआई में ले जाता है।

24वह पृथ्‍वी के मुख्‍य लोगों की बुद्धि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्‍थानों में जहाँ रास्‍ता नहीं है, भटकाता है।

25वे बिन उजियाले के अन्‍धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्‍हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाई डगमगाते हुए चलते हैं।


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