1ऐ 'अज़ीज़ो! अब मैं तुम्हें ये दूसरा खत लिखता हूँ, और याद दिलाने के तौर पर दोनों खतों से तुम्हारे साफ़ दिलों को उभारता हूँ,
2कि तुम उन बातों को जो पाक नबियों ने पहले कहीं, और खुदावन्द और मुन्जी के उस हुक्म को याद रख्खो जो तुम्हारे रसूलों की ज़रिये आया था |
3और पहले जान लो कि आखिरी दिनों में ऐसी हँसी ठटठा करनेवाले आएँगे जो अपनी ख्वाहिशों के मुवाफ़िक चलेंगे,
4और कहेंगे, "उसके आने का वा'दा कहाँ गया? क्यूँकि जब से बाप-दादा सोए हैं, उस वक़्त से अब तक सब कुछ वैसा ही है जैसा दुनिय के शुरू' से था।”
5वो तो जानबूझ कर ये भूल गए कि ख़ुदा के कलाम के ज़री'ए से आसमान पहले से मौजूद है, और ज़मीन पानी में से बनी और पानी में कायम है;
6इन ही के ज़री'ए से उस ज़माने की दुनिया डूब कर हलाक हुई |
7मगर इस वक़्त के आसमान और ज़मीन उसी कलाम के ज़री'ए से इसलिए रख्खे हैं कि जलाए जाएँ ; और वो बेदीन आदमियों की 'आदालत और हलाकत के दिन तक महफूज़ रहेंगे
8ऐ 'अज़ीज़ो ! ये ख़ास बात तुम पर पोशीदा न रहे कि खुदावन्द के नज़दीक एक दिन हज़ार बरस के बराबर है, और हज़ार बरस एक दिन के बराबर |
9ख़ुदावन्द अपने वा'दे में देर नहीं करता, जैसी देर कुछ लोग समझते है; बल्कि तुम्हारे बारे में हलाकत नहीं चाहता बल्कि ये चाहता है कि सबकी तौबा तक नौबत पहुँचे |
10लेकिन खुदावन्द का दिन चोर की तरह आ जाएगा, उस दिन आसमान बड़े शोर-ओ-गुल के साथ बर्बाद हो जाएँगे, और अजराम-ए-फ़लक हरारत की शिद्दत से पिघल जाएँगे, और ज़मीन और उस पर के काम जल जाएँगे |
11जब ये सब चीज़ें इस तरह पिघलने वाली हैं, तो तुम्हें पाक चाल-चलन और दीनदारी में कैसे कुछ होना चाहिए,
12और खुदा के उस दिन के आने का कैसा कुछ मुन्तज़िर और मुश्ताक़ रहना चाहिए, जिसके जरिये आसमान आग से पिघल जाएँगे, और अजराम -ए - फलक हरारत की शिद्दत से गल जाएँगे।
13लेकिन उसके वादे के मुवाफ़िक हम नए आसमान और नई ज़मीन का इन्तज़ार करते हैं, जिनमें रास्तबाज़ी बसी रहेगी |
14पस ऐ 'अज़ीज़ो ! चूँकि तुम इन बातों के मुन्तज़िर हो, इसलिए उसके सामने इत्मीनान की हालत में बेदाग़ और बे-ऐब निकलने की कोशिश करो,
15और हमारे खुदावन्द के तहम्मुल को नजात समझो, चुनाँचे हमारे प्यारे भाई पौलूस ने भी उस हिकमत के मुवाफिक़ जो उसे 'इनायत हुई, तुम्हें यही लिखा है
16और अपने सब खतों में इन बातों का ज़िक्र किया है, जिनमें कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना मुश्किल है, और जाहिल और बे-कयाम लोग उनके मा'नों को और सहीफों की तरह खींच तान कर अपने लिए हलाकत पैदा करते हैं |
17पस ऐ 'अज़ीज़ो ! चूँकि तुम पहले से आगाह हो, इसलिए होशियार रहो, ताकि बे-दीनों की गुमराही की तरफ़ खिंच कर अपनीं मज़बूती को छोड़ न दो |
18बल्कि हमारे खुदावन्द और मुन्जी ईसा' मसीह के फज़ल और 'इरफान में बढ़ते जाओ | उसी की बड़ाई अब भी हो,और हमेशा तक होती रहे | आमीन |