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1सुनों, यहोवा पृथ्‍वी को निर्जन और सुनसान करने पर है, वह उसको उलटकर उसके रहनेवालों को तितर-बितर करेगा।

2और जैसी यजमान की वैसी याजक की; जैसी दास की वैसी स्‍वामी की; जैसी दासी की वैसी स्‍वामिनी की; जैसी लेनेवाले की वैसी बेचनेवाले की; जैसी उधार देनेवाले की वैसी उधार लेनेवाले की; जैसी ब्‍याज लेनेवाले की वैसी ब्‍याज देनेवाले की; सभों की एक ही दशा होगी।

3पृथ्‍वी शून्‍य और सत्‍यानाश हो जाएगी; क्‍योंकि यहोवा ही ने यह कहा है।

4पृथ्‍वी विलाप करेगी और मुर्झाएगी, जगत कुम्‍हलाएगा और मुर्झा जाएगा; पृथ्‍वी के महान लोग भी कुम्‍हला जाएँगे।

5पृथ्‍वी अपने रहनेवालों के कारण अशुद्ध हो गई है, क्‍योंकि उन्होंने व्‍यवस्‍था का उल्‍लंघन किया और विधि को पलट डाला, और सनातन वाचा को तोड़ दिया है।

6इस कारण पृथ्‍वी को शाप ग्रसेगा और उसमें रहनेवाले दोषी ठहरेंगे; और इसी कारण पृथ्‍वी के निवासी भस्‍म होंगे और थोड़े ही मनुष्‍य रह जाएँगे।

7नया दाखमधु जाता रहेगा, दाखलता मुर्झा जाएगी, और जितने मन में आनन्‍द करते हैं सब लम्‍बी-लम्‍बी साँस लेंगे।

8डफ का सुखदाई शब्‍द बन्‍द हो जाएगा, प्रसन्न होनेवालों का कोलाहल जाता रहेगा वीणा का सुखदाई शब्‍द शान्‍त हो जाएगा।

9वे गाकर फिर दाखमधु न पीएँगे; पीनेवाले को मदिरा कड़वी लगेगी।

10गड़बड़ी मचानेवाली नगरी नाश होगी, उसका हर एक घर ऐसा बन्‍द किया जाएगा कि कोई पैठ न सकेगा।

11सड़कों में लोग दाखमधु के लिये चिल्लाएँगे; आनन्‍द मिट जाएगा: देश का सारा हर्ष जाता रहेगा।

12नगर उजाड़ ही उजाड़ रहेगा, और उसके फाटक तोड़कर नाश किए जाएँगे।

13क्‍योंकि पृथ्‍वी पर देश-देश के लोगों में ऐसा होगा जैसा कि जैतून के झाड़ने के समय, या दाख तोड़ने के बाद कोई कोई फल रह जाते हैं।

14वे लोग गला खोलकर जयजयकार करेंगे, और यहोवा के महात्‍म्‍य को देखकर समुद्र से ललकारेंगे।

15इस कारण पूर्व में यहोवा की महिमा करो, और समुद्र के द्वीपों में इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम का गुणानुवाद करो।

16पृथ्‍वी की छोर से हमें ऐसे गीत की ध्‍वनि सुन पड़ती है, कि धर्मी की महिमा और बड़ाई हो। परन्‍तु मैंने कहा, “हाय, हाय! मैं नाश हो गया, नाश! क्‍योंकि विश्‍वासघाती विश्‍वासघात करते, वे बड़ा ही विश्‍वासघात करते हैं।”

17हे पृथ्‍वी के रहनेवालों तुम्‍हारे लिये भय और गड़हा और फन्‍दा है!

18जो कोई भय के शब्‍द से भागे वह गड़हे में गिरेगा, और जो कोई गड़हे में से निकले वह फन्‍दे में फँसेगा। क्‍योंकि आकाश के झरोखे खुल जाएँगे, और पृथ्‍वी की नींव डोल उठेगी।

19पृथ्‍वी फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी पृथ्‍वी अत्‍यन्‍त कम्‍पायमान होगी।

20वह मतवाले के समान बहुत डगमगाएगी और मचान के समान डोलेगी; वह अपने पाप के बोझ से दबकर गिरेगी और फिर न उठेगी।

21उस समय ऐसा होगा कि यहोवा आकाश की सेना को आकाश में और पृथ्‍वी के राजाओं को पृथ्‍वी ही पर दण्‍ड देगा।

22वे बन्दियों के समान गड़हे में इकट्ठे किए जाएँगे और बन्‍दीगृह में बन्‍द किए जाएँगे; और बहुत दिनों के बाद उनकी सुधि ली जाएगी।

23तब चन्‍द्रमा संकुचित हो जाएगा और सूर्य लज्‍जित होगा; क्‍योंकि सेनाओं का यहोवा सिय्‍योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपनी प्रजा के पुरनियों के सामने प्रताप के साथ राज्‍य करेगा।



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