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1अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दे, क्‍योंकि बहुत दिन के बाद तू उसे फिर पाएगा।

2सात वरन आठ जनों को भी भाग दे, क्‍योंकि तू नहीं जानता कि पृथ्‍वी पर क्‍या विपत्ति आ पड़ेगी।

3यदि बादल जल भरे हैं, तब उसको भूमि पर उण्‍डेल देते हैं; और वृक्ष चाहे दक्खिन की ओर गिरे या उत्तर की ओर, तौभी जिस स्‍थान पर वृक्ष गिरेगा, वहीं पड़ा रहेगा।

4जो वायु को ताकता रहेगा वह बीज बोने न पाएगा; और जो बादलों को देखता रहेगा वह लवने न पाएगा।

5जैसे तू वायु के चलने का मार्ग नहीं जानता और किस रीति से गर्भवती के पेट में हड्डियाँ बढ़ती हैं, वैसे ही तू परमेश्‍वर का काम नहीं जानता जो सब कुछ करता है।

6भोर को अपना बीज बो, और साँझ को भी अपना हाथ न रोक; क्‍योंकि तू नहीं जानता कि कौन सुफल होगा, यह या वह या दोनों के दोनों अच्‍छे निकलेंगे।

7उजियाला मनभावना होता है, और धूप के देखने से आँखों को सुख होता है।

8यदि मनुष्‍य बहुत वर्ष जीवित रहे, तो उन सभों में आनन्‍दित रहे; परन्‍तु यह स्‍मरण रखे कि अन्‍धियारे के दिन भी बहुत होंगे। जो कुछ होता है वह व्‍यर्थ है।

9हे जवान, अपनी जवानी में आनन्‍द कर, और अपनी जवानी के दिनों में मगन रह; अपनी मनमानी कर और अपनी आँखों की दृष्‍टि के अनुसार चल। परन्‍तु यह जान रख कि इन सब बातों के विषय में परमेश्‍वर तेरा न्‍याय करेगा।

10अपने मन से खेद और अपनी देह से दु:ख दूर कर, क्‍योंकि लड़कपन और जवानी दोनो व्‍यर्थ है।



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