1इस्राएली पुरूषों ने तो मिस्पा में शपथ खाकर कहा था, “हम में कोई अपनी बेटी किसी बिन्यामीनी को न विवाह देगा।”
2वे बेतेल को जाकर साँझ तक परमेश्वर के सामने बैठे रहे, और फूट फूटकर बहुत रोते रहे।
3और कहते थे, “हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, इस्राएल में ऐसा क्यों होने पाया, कि आज इस्राएल में एक गोत्र की घटी हुई है?”
4फिर दूसरे दिन उन्होंने सवेरे उठ वहाँ वेदी बनाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
5तब इस्राएली पूछने लगे, “इस्राएल के सारे गोत्रों में से कौन है जो यहोवा के पास सभा में न आया था?” उन्होंने तो भारी शपथ खाकर कहा था, “जो कोई मिस्पा को यहोवा के पास न आए वह निश्चय मार डाला जाएगा।”
6तब इस्राएली अपने भाई बिन्यामीन के विषय में यह कहकर पछताने लगे, “आज इस्राएल में से एक गोत्र कट गया है।
7हम ने जो यहोवा की शपथ खाकर कहा है, कि हम उन्हें अपनी किसी बेटी को न विवाह देंगे, इसलिये बचे हुओं को स्त्रियाँ मिलने के लिये क्या करें?”
8जब उन्होंने यह पूछा, “इस्राएल के गोत्रों में से कौन है जो मिस्पा को यहोवा के पास न आया था?” तब यह मालूम हुआ, कि गिलादी यावेश से कोई छावनी में सभा को न आया था।
9अर्थात् जब लोगों की गिनती की गई, तब यह जाना गया कि गिलादी यावेश के निवासियों में से कोई यहाँ नहीं है।
10इसलिये मण्डली ने बारह हजार शूरवीरों को वहाँ यह आज्ञा देकर भेज दिया, “तुम जाकर स्त्रियों और बालबच्चों समेत गिलादी यावेश को तलवार से नाश करो।
11और तुम्हें जो करना होगा वह यह है, कि सब पुरूषों को और जितनी स्त्रियों ने पुरूष का मुँह देखा हो उनको सत्यानाश कर डालना।”
12और उन्हें गिलादी यावेश के निवासियों में से चार सौ जवान कुमारियाँ मिलीं जिन्हों ने पुरूष का मुँह नहीं देखा था; और उन्हें वे शीलो को जो कनान देश में है छावनी में ले आए।
13तब सारी मण्डली ने उन बिन्यामीनियों के पास जो रिम्मोन नाम चट्टान पर थे कहला भेजा, और उनसे संधि का प्रचार कराया।
14तब बिन्यामीन उसी समय लौट गए; और उनको वे स्त्रियाँ दी गईं जो गिलादी यावेश की स्त्रियों में से जीवित छोड़ी गईं थीं; तौभी वे उनके लिये थोड़ी थीं।
15तब लोग बिन्यामीन के विषय फिर यह कहके पछताये, कि यहोवा ने इस्राएल के गोत्रों में घटी की है।
16तब मण्डली के वृद्ध गोत्रों ने कहा, “बिन्यामीनी स्त्रियाँ जो नाश हुई हैं, तो बचे हुए पुरूषों के लिये स्त्री पाने का हम क्या उपाय करें?”
17फिर उन्होंने कहा, “बचे हुए बिन्यामीनियों के लिये कोई भाग चाहिये, ऐसा न हो कि इस्राएल में से एक गोत्र मिट जाए।
18परन्तु हम तो अपनी किसी बेटी को उन्हें विवाह नहीं दे सकते, क्योंकि इस्राएलियों ने यह कहकर शपथ खाई है कि शापित हो वह जो किसी बिन्यामीनी को अपनी लड़की विवाह दे।”
19फिर उन्होंने कहा, “सुनो, शीलो जो बेतेल की उत्तर और, और उस सड़क की पूर्व और है जो बेतेल से शकेन को चली गई है, और लाबोना की दिक्खन और है, उसमें प्रति वर्ष यहोवा का एक पर्व माना जाता है।”
20इसलिये उन्होंने बिन्यामीनियों को यह आज्ञा दी, कि तुम जाकर दाख की बारियों के बीच घात लगाए बैठे रहो,
21और देखते रहो; और यदि शीलो की लड़कियाँ नाचने को निकलें, तो तुम दाख की बारियों से निकलकर शीलो की लड़कियों में से अपनी अपनी स्त्री को पकड़कर बिन्यामीन के देश को चले जाना।
22और जब उनके पिता वा भाई हमारे पास झगड़ने को आएँगे, तब हम उनसे कहेंगे, “अनुग्रह करके उनको हमें दे दो, क्योंकि लड़ाई के समय हम ने उन में से एक एक के लिये स्त्री नहीं बचाई;** और तुम लोगों ने तो उनको विवाह नहीं दिया, नहीं तो तुम अब दोषी ठहरते।”
23तब बिन्यामीनियों ने ऐसा ही किया, अर्थात् उन्होंने अपनी गिनती के अनुसार उन नाचनेवालियों में से पकड़कर स्त्रियाँ ले लीं; तब अपने भाग को लौट गए, और नगरों को बसाकर उन में रहने लगे।
24उसी समय इस्राएली वहाँ से चलकर अपने अपने गोत्र और अपने अपने घराने को गए, और वहाँ से वे अपने अपने निज भाग को गए।
25उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था।