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1जब सातवां महीना आया, और इस्राएली अपने अपने नगर में बस गए, तो लोग यरूशलेम में एक मन होकर इकट्ठे हुए।

2तब योसादाक के पुत्र येशू ने अपने भाई याजकों समेत और शालतीएल के पुत्र जरूब्‍बाबेल ने अपने भाइयों समेत कमर बान्‍धकर इस्राएल के परमेश्‍वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएँ, जैसे कि परमेश्‍वर के भक्‍त मूसा की व्‍यवस्‍था में लिखा है।(मत्ती. 1:12,लूका 3:27)

3तब उन्‍हों ने वेदी को उसके स्‍थान पर खड़ा किया क्‍योंकि उन्‍हें उस ओर के देशों के लोगों का भय रहा, और वे उस पर यहोवा के लिये होमबलि अर्थात् प्रतिदिन सबेरे और साँझ के होमबलि चढ़ाने लगे।

4और उन्‍हों ने झोपडि़यों के पर्व को माना, जैसे कि लिखा है, और प्रतिदिन के होमबलि एक एक दिन की गिनती और नियम के अनुसार चढ़ाए।

5और उसके बाद नित्‍य होमबलि और नये नये चान्‍द और यहोवा के पवित्र किए हुए सब नियत पर्वो के बलि और अपनी अपनी इच्‍छा से यहोवा के लिये सब स्‍वेच्‍छाबलि हर एक के लिये बलि चढ़ाए।

6सातवें महीने के पहिले दिन से वे यहोवा को होमबलि चढ़ाने लगे। परन्‍तु यहोवा के मन्‍दिर की नेव तब तक न डाली गई थी।

7तब उन्‍हों ने पत्‍थर गढ़नेवालों और कारीगरों को रुपया, और सीदोनी और सोरी लोगों को खाने-पीने की वस्‍तुएँ और तेल दिया, कि वे फारस के राजा कुस्रू के पत्र के अनुसार देवदार की लकड़ी लबानोन से जापा के पास के समुद्र में पहुँचाएँ।

8उनके परमेश्‍वर के भवन में, जो यरूशलेम में है, आने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने में, शालतीएल के पुत्र जरुब्‍बाबेल ने और योसादाक के पुत्र येशू ने और उनके और भाइयों ने जो याजक और लेवीय थे, और जितने बन्‍धुआई से यरूशलेम में आए थे उन्‍हों ने भी काम को आरम्‍भ किया, । और बीस वर्ष अथवा उससे अधिक अवस्‍था के लेवियों को यहोवा के भवन का काम चलाने के लिये नियुक्‍त किया।

9तो येशू और उसके बेटे और भाई और कदमीएल और उसके बेटे, जो यहूदा की सन्‍तान थे, और हेनादाद कीं सन्‍तान और उनके बेटे परमेश्‍वर के भवन में कारीगरों का काम चलाने को खड़े हुए।

10और जब राजों ने यहोवा के मन्दिर की नेव डाली तब अपने वस्‍त्र पहिने हुए, और तुरहियाँ लिये हुए याजक, और झाँझ लिये हुए आसाप के वंश के लेवीय इसलिये नियुक्‍त किए गए कि इस्राएलियों के राजा दाऊद की चलाई हुई रीति** के अनुसार यहोवा की स्‍तुति करें।

11सो वे यह गा गाकर यहोवा की स्‍तुति और धन्‍यवाद करने लगे, “वह भला है, और उसकी करुणा इस्राएल पर सदैव बनी है।” और जब वे यहोवा की स्‍तुति करने लगे तब सब लोगों ने यह जानकर कि यहोवा के भवन की नेव अब पड़ रही है, ऊंचे शब्‍द से जय जयकार किया।

12परन्‍तु बहुतेरे याजक और लेवीय और पूर्वजों के घरानों के मुख्‍य पुरुष, अर्थात् वे बूढ़े जिन्‍हों ने पहिला भवन देखा था, जब इस भवन की नेव उनकी आँखों के सामने पड़ी तब फूट फूटकर रोने लगे, और बहुतेरे आनन्‍द के मारे ऊँचे शब्‍द से जय जयकार कर रहे थे।

13इसलिये लोग, आनन्‍द के जय जयकार का शब्‍द, लोगों के रोने के शब्‍द से अलग पहिचान न सके, क्‍योंकि लोग ऊँचे शब्‍द से जय जयकार कर रहे थे, और वह शब्‍द दूर तक सुनाई देता था।



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