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1इसके बाद अबशालोम ने रथ और घोड़े, और अपने आगे आगे दौड़नेवाले पचास मनुष्‍य रख लिए।

2और अबशालोम सबेरे उठकर फाटक के मार्ग के पास खडा हुआ करता था; और जब जब कोई मुद्दई राजा के पास न्‍याय के लिये आता, तब तब अबशालोम उसको पुकारके पूछता था, “तू किस नगर से आता है?” और वह कहता था, “तेरा दास इस्राएल के फुलाने गोत्र का है।”

3तब अबशालोम उसे कहता था, “सुन, तेरा पक्ष तो ठीक और न्‍याय का है; परन्‍तु राजा की और से तेरी सुननेवाला कोई नहीं है।”

4फिर अबशालोम यह भी कहा करता था, “भला होता कि मैं इस देश में न्‍यायी ठहराया जाता! कि जितने मुकद्दमावाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्‍याय चुकाता।”

5फिर जब कोई उसे दण्डवत् करने को निकट आता, तब वह हाथ बढ़ाकर उसको पकड़कर चूम लेता था।

6और जितने इस्राएली राजा के पास अपना मुकद्दमा लेकर करने को आते उन सभों से अबशालोम ऐसा ही व्‍यवहार किया करता था; इस प्रकार अबशालोम ने इस्राएली मनुष्‍यों के मन को हर लिया।

7चार वर्ष के बीतने पर अबशालोम ने राजा से कहा, “मुझे हेब्रोन जाकर अपनी उस मन्नत को पूरी करने दे, जो मैं ने यहोवा की मानी है।

8तेरा दास तो जब आराम के गशूर में रहता था, तब यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि यहोवा मुझे सचमुच यरूशलेम को लौटा ले आए, तो मैं यहोवा की उपासना करूँगा।”

9राजा ने उससे कहा, “कुशल क्षेम से जा।” और वह चलकर हेब्रोन को गया।(मर 5:34)

10तब अबशालोम ने इस्राएल के समस्‍त गोत्रें में यह कहने के लिये भेदिए भेजे, “जब नरसिंगे का शब्‍द तुम को सुन पड़े, तब कहना, ‘अबशालोम हेब्रोन में राजा हुआ !’”

11और अबशालोम के संग दो सौ नेवतहारी यरूशलेम से गए; वे सीधे मन से उसका भेद बिना जाने गए।

12फिर जब अबशालोम का यज्ञ हुआ, तब उसने गीलोवासी अहीतोपेल को, जो दाऊद का मंत्री था, बुलवा भेजा कि वह अपने नगर गीलो से आए। और राजद्रोह की गोष्‍ठी ने बल पकड़ा, क्‍योंकि अबशालोम के पक्ष के लोग बराबर बढ़ते गए।

13तब किसी ने दाऊद के पास जाकर यह समाचार दिया, “इस्राएली मनुष्‍यों के मन अबशालोम की ओर हो गए हैं।”

14तब दाऊद ने अपने सब कर्मचारियों से जो यरूशलेम में उसके संग थे कहा, “आओ, हम भाग चलें; नहीं तो हम में से कोई भी अबशालोम से न बचेगा; इसलिये फुर्तीं करते चले चलो, ऐसा न हो कि वह फुर्तीं करके हमें आ घेरे, और हमारी हानि करे, और इस नगर को तलवार से मार ले।”

15राजा के कर्मचारियों ने उससे कहा, “जैसा हमारे प्रभु राजा को अच्‍छा जान पड़े, वैसा ही करने के लिये तेरे दास तैयार हैं।”

16तब राजा निकल गया, और उसके पीछे उसका समस्‍त घराना निकला। और राजा दस रखेलियों को भवन की चौकसी करने के लिये छोड़ गया।

17और राजा निकल गया, और उसके पीछे सब लोग निकले; और वे बेतमेर्हक में ठहर गए।

18और उसके सब कर्मचारी उसके पास से होकर आगे निकाल गए; और सब करेती, और सब पलेती, और सब गती, अर्थात् जो छः सौ पुरुष गत से उसके पीछे हो लिए थे वे सब राजा के सामने से होकर आगे चले।

19तब राजा ने गती इत्‍तै से पूछा, “हमारे संग तू क्‍यों चलता है? लौटकर राजा के पास रह; क्‍योंकि तू परदेशी और अपने देश से दूर है, इसलिये अपने स्‍थान को लौट जा।

20तू तो कल ही आया है, क्‍या मैं आज तुझे अपने साथ मारा मारा फिराऊँ? मैं तो जहाँ जा सकूंगा वहाँ जाऊँगा। तू लौट जा, और अपने भाइयों को भी लौटा दे; परमेश्वर की करुणा और सच्‍चाई तेरे संग रहे।”

21इत्‍तै ने राजा को उत्‍तर देकर कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, और मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपथ, जिस किसी स्‍थान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिये हो चाहे जीवित रहने के लिये, उसी स्‍थान में तेरा दास भी रहेगा।”

22तब दाऊद ने इत्‍तै से कहा, “पार चल।” अत: गती इत्‍तै अपने समस्‍त जनों और अपने साथ के सब बाल-बच्‍चों समेत पार हो गया।

23सब रहनेवाले चिल्‍ला चिल्‍लाकर रोए; और सब लोग पार हुए, और राजा भी किद्रोन नाम नाले के पार हुआ, और सब लोग नाले के पार जंगल के मार्ग की ओर पार होकर चल पड़े।

24तब क्‍या देखने में आया, कि सादोक भी और उसके संग सब लेवीय परमेश्‍वर की वाचा का सन्‍दूक उठाए हुए हैं; और उन्होंने परमेश्‍वर के सन्‍दूक को धर दिया, तब एब्‍यातार चढ़ा, और जब तक सब लोग नगर से न निकले तब तक वहीं रहा।

25तब राजा ने सादोक से कहा, “परमेश्‍वर के सन्‍दूक को नगर में लौटा ले जा। यदि यहोवा के अनुग्रह की दृष्‍टि मुझ पर हो, तो वह मुझे लौटाकर उसको और अपने वासस्‍थान को भी दिखाएगा;

26परन्‍तु यदि वह मुझ से ऐसा कहे, ‘मैं तुझ से प्रसन्न नहीं,’ तौभी मैं हाजिर हूँ, जैसा उसको भाए वैसा ही वह मेरे साथ बर्ताव करे।”

27फिर राजा ने सादोक याजक से कहा, “क्‍या तू दर्शी नहीं है? सो कुशल क्षेम से नगर में लौट जा, और तेरा पुत्र अहीमास, और एब्‍यातार का पुत्र योनातान, दोनों तुम्‍हारे संग लौटें।

28सुनो, मैं जंगल के घाट के पास तब तक ठहरा रहूँगा, जब तक तुम लोगों से मुझे हाल का समाचार न मिले।”

29तब सादोक और एब्‍यातार ने परमेश्‍वर के सन्‍दूक को यरूशलेम में लौटा दिया; और आप वही रहे।

30तब दाऊद जलपाइयों के पहाड़ की चढ़ाई पर सिर ढांपे, नंगे पाँव, रोता हुआ चढ़ने लगा; और जितने लोग उसके संग थे, वे भी सिर ढांपे रोते हुए चढ़ गए।

31तब दाऊद को यह समाचार मिला, “अबशालोम के संगी राजद्रोहियों के साथ अहीतोपेल है।” दाऊद ने कहा, “हे यहोवा, अहीतोपेल की सम्‍मति को मूर्खता बना दे।”

32जब दाऊद चोटी तक पहुँचा, जहाँ परमेश्‍वर को दण्डवत् किया करते थे, तब एरेकी हूशै अंगरखा फाड़े, सिर पर मिट्टी डाले हुए उससे मिलने को आया।

33दाऊद ने उससे कहा, “यदि तू मेरे संग आगे जाए, तब तो मेरे लिये भार ठहरेगा।

34परन्‍तु यदि तू नगर को लौटकर अबशालोम से कहने लगे, ‘हे राजा, मैं तेरा कर्मचारी हूँगा; जैसा मैं बहुत दिन तेरे पिता का कर्मचारी रहा, वैसा ही अब तेरा रहूँगा,’ तो तू मेरे हित के लिये अहीतोपेल की सम्‍मति को निष्‍फल कर सकेगा।

35और क्‍या वहाँ तेरे संग सादोक और एब्‍यातार याजक न रहेंगे? इसलिये राजभवन में से जो हाल तुझे सुन पड़े, उसे सादोक और एब्‍यातार याजकों को बताया करना।(मर 2:26)

36उनके साथ तो उनके दो पुत्र, अर्थात् सादोक का पुत्र अहीमास, और एब्‍यातार का पुत्र योनातान, वहाँ रहेंगे; तो जो समाचार तुम लोगों को मिले उसे मेरे पास उन्‍हीं के हाथ भेजा करना।”

37और दाऊद का मित्र, हूशै, नगर को गया, और अबशालोम भी यरूशलेम में पहुँच गया।



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