Bible 2 India Mobile
[VER] : [HINDI]     [PL]  [PB] 
 <<  1 Timothy 2 >> 

1अब मैं सबसे पहले यह आग्रह करता हूँ, कि विनती, प्रार्थना, निवेदन, धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएँ।

2राजाओं और सब ऊँचे पदवालों के निमित्त इसलिए कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गरिमा में जीवन बिताएँ।

3यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को अच्छा लगता और भाता भी है,

4जो यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली-भाँति पहचान लें। (यहे. 18:23)

5क्योंकि परमेश्‍वर एक ही है, और परमेश्‍वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है*, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है,

6जिसने अपने आप को सबके छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उसकी गवाही ठीक समयों पर दी जाए।

7मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया।

8इसलिए मैं चाहता हूँ, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।

9वैसे ही स्त्रियाँ भी संकोच और संयम के साथ सुहावने* वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूँथने, सोने, मोतियों, और बहुमूल्य कपड़ों से,

10पर भले कामों से, क्योंकि परमेश्‍वर की भक्ति करनेवाली स्त्रियों को यही उचित भी है।

11और स्त्री को चुपचाप पूरी अधीनता में सीखना चाहिए।

12मैं कहता हूँ, कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुष पर अधिकार चलाए, परन्तु चुपचाप रहे।

13क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। (1 कुरि. 11:8)

14और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावे में आकर अपराधिनी हुई। (उत्प. 3:6)

15तो भी स्त्री बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएगी, यदि वह संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहें।



 <<  1 Timothy 2 >> 


Bible2india.com
© 2010-2024
Help
Single Panel

Laporan Masalah/Saran